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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० अध्ययननो अर्य स. समपातपस्वी ल० लगवंत स. श्रीमहावीरदेवे या सामान्य प्र. ३० न. ए. एनि सम्यक्त्वपराक्रम ३५४) एसस्वक समन्तपरक मस्स यास्स । समोएां लगवयामहावीरेणे ॥ घविए प्रकारें कयुं प० फसदेषामचेकरी जाएयोप० सरूपनेकहवेकरी परूप्या घणा लेदने देषामवे करी देषामोनि० विसेषेदेषामयो नुपदेसो ५० पन्नबिए परूविए दंसिएनिसिए नवदंसिए ॥ तिबेमि सुधर्मास्वामिएं जंबूस्वामीमतें कहे जंबूजिममे श्रीमहावीर देवसमीपें सांत्मत्युं हतुतिमफुं तुजप्रतेक ३० इति श्री सम्यक्त्व पराक्रमत्र्मध्ययनं समाप्तं ॥ २९५ ॥ नगए इतिसमत्तप्रकमनामाझयां एगुएातीसमसंमत्तं ॥ २९५ ॥ त्रीसमा अध्ययनने विषे प्रमाद बांकची कमी से प्रमादरहितजए तेोतपकरवो तेलगी तपनासरूप ज० जेपापकर्म रा० रागदेषकरीने स० प्रति हेनुपराज्या कुर्मखां ३० मा अध्ययननेविषे कहेबे जहानु॑ पावगंकम्मं । रागदोससमझियं । खवेतपा० प्राएाबध सु० मृषावाद जूगे म० प्रदत्तमैथुन परिग्रहथी ॥ १ ॥ पाएावह मुसावाया ॥ दत्तमेण परिण जी० एवो जीव हवे थाए प्र० नवां कर्म ग्रहवादी रहित २ पं० पांचसमित एतत्रए ३५४ हार्नु विराने ।। राइलोयाविरन जीवोलवई अणासवो ॥ २ ॥ पंचसमश्नुतिगुत्ते महिन् तपेकरी साधू ते एक एकाग्र एकमनेको सालले वसालिक ॥ तमेगग्गमणोसु निवर्त्यो रात्री लौजनयी निवर्त्यो गुप्तेसहित For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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