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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org न ० कपायरहित जि० जितेंडी ३५५ कसायजिंइंदि ॥ गारवोयनिस्सो ॥ ए० एमएाबधनी विरति प्रमुष वि० विपरीत । विषे रा० रागद्वेष स० एएसिंतुविवञ्चासे प्राएाबधादिकने रागदोस समधियं लखहं शिष्यमुफने कहतार्थका ४ ज० जेम मोटा तलाव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म० एागार घरहित नि० भएाससरहित जी० एवो जीव हुए थाए नवां कर्मग्रहवा रहित ३ जीवोलवई पासो ॥ ३ ॥ मतिहे नृपराजा पापकर्मव० खपावे जेम न० एकाग्र सां ॥ क० अनुक्रमे सो० पाणीनो सोषण ५. वे जालिकू । तमेगग्ग सं॰ संघोषको ज॰ नबो पाएगीच्यावबानोन • पहिख पाणी अपने नार मोसु ॥ ४ ॥ जहामहातजागस्स । संनिरुद्धेजलागमे नृसिंचगाए तवणाएँ एक एप्रकारें सं० साधूने पण पा० पापकर्म नवां यावत रह्या एवासाधु होइतेनें कम्मे सोसावे ॥ ५ ॥ एवंतुसंजयस्सावि ॥ पावकम्मनिरासवे । लवक लवनी कोमिना सं० संच्याकर्म त तपेंकरी दय थाए ६ सो० ते तप फु 1 बेकारें को बा० बाह्य तप नेत सिंचियंकम्मं । तवसानिद्यरिधई ॥ ६ ॥ सोनवोऽविहोवृत्तो । बाहिरतिरो तहा ए० एम स्वंतर तप बाह्यतपना नाम कहेबे प्र० नमोकारसि यदि श्र० प्रासतप १ नग ३५५ एवं अंतरोतवो ॥ ७ ॥ समूएगोयरिया ॥ दरी नपर बा० बाह्यतप ब० प्रकारें को बाहिरी । For Private and Personal Use Only अ. ३०
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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