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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नः पं० पंमिनने स.सकाममरण न० उत्कृष्टपदे एकवारकेवपित्र्या ता तेबे मरणामाहे ए पहिलो ग० म०महावीरतीर्थकरे का अ५ तु पदपूर्पो . श्रील होई ३ थानक अकाम मरण देषामयो काममोम पंमियाए सकामंतु ॥ नकोसेएसइनवे ॥३॥ तचीमं पदमंगणं॥महावीरेएदेसियं ॥का नेविषे गिरगृह नि अनिहे कु० कुरकर्मन करे.५ जे जे अज्ञानी कु०पासनेअर्ये ऽव्यपास तेमृगादिक होए जेम अज्ञानी . गृह छोइ का कामभोगनेविधे साह्रवानेऽशासमायनेमिट्यानसः मंगिड़े जहा बासे लिसंक्रूराइंकबई॥४॥ जेगिड़े कामलोगेसुएगे कमायगइनमय |ग प्रवर्ने नहि भ मे नी दीगे चष्टी दीर्ग ३० एभरपक्षर कामलोग ह. हायनेविषे इस ए कामत्नाग नेजेकामत्नोग प० परलोक व्याधीनुपनीजेरनि ५ आव्या . कालांतरेपदासजमहिता अन जुमे दिवेपरेखोए ॥ चस्कूदिवाइमारई ॥५॥ हागयाइमे कामा॥ काबियाजे अशाग आगसेकाला को कोए जारो प० परलोक अथवे या० अथवा न नथी अथवा बखि ६ जर केनपाएकसाथैऊपए थाईस ३० एहयोग तरेपामिएनेतो या। कोजागाइ परेखोए अविवानचिवापुतो ॥६॥ जगेगसहिहोस्खामिइबाले || जानी ||३ For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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