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न | जगजिवारे सेन्नेरोगीमृग नातिवारे गोगोचरीमृगनुंजिहां ल० लान तृणादिक पाणीने व वनग्रहनरुत्रादिक अ-१६॥
सषीहोए जाए ,लक्ष होएतृणादिकनिहां अरयें . स जिहां भोवर || जयाय सेसुहीहोई । तयागबईगोयरं। जाए लत्तपाएस्सअजाए। वनराणिसराहोएनिहां मृग रवान् तृणादिक पाळपाएी व वनग्रह तिहांसरोवर मिन् मृगनेचरचूने मृगचर्याश्रा ग० जाए ७१ वाईने पीने नक्षत्रादिक होए नेविषे
'चरीने सेवीने गिय ॥१॥ खाइत्तांपापियंपानं । वझरेहिं सूरेहिंवा । मिग्रचारियं चरित्ताएं। ग पत्रे मिन्यापपीरहेवानी लूमि एफएमृगनी/ सन्उदमवंन जनीएमजे ' अन्धपोयानकनेफिरतोफिरतो 'मिन् मृगनी | जाधू होएनिहां ८२ परेसजमनेविषे मृगनी परें साधु . रहेअप्रतिबंधजतीले नेजागी परेनकरचा | बई मिगचारियं ॥२॥ एवं समबिए लिस्क । एवमेयअणेगसो। या मिगचा प्रतिबंध चन्गोचरीशपिचरीने जुन्देवसोकतया मोकगतीए । जन्जेमोमिन्मृगएकसोअघोगमेचरतोयकोवितेमयनीसावद्य | नहोए मृगचर्या सेवीने जाए दिनुची दिसें
टालपालपी एकघरोनिसानालिए घोमिक्षानोविचरे अन्धोध||
रेमृगवासोरहे तेमयतीपणेयानकवासरहे एकथानक पनि बधनरहे | रियचरित्ता नपक्वमदिसं ॥७३॥ जहामिएएगणेगचारीअगवासो
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