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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जो अक्षिरोमनामाचनुरेंदीनीजात ज०जस एच रिंडीनी नीव एचमुरेंडीनीजानन लेपण यनरिंदीनीभातए २ एगों प्रकारेंचनरेंदीएन अ३६ नहिंजलियाजसकारियं । जान नीयाततबगाश्या ॥४॥अादिदेईनेश्चनरिंदिवाएए एपूर्वकह्याने अ० घोप्रकारेएकएकह्याआदिदेश्नेहवे क्षेत्रयी कहेडेखो लोकना ले ते सघलाचक्षरेपीकह्या १५० हवे कालपीचनरें। । रोगहाएवमायने । लोगस्सएगदेसंमि । एक बित्नाग तेसोपरिकित्तिया ॥१५० ॥डी कहेले. सं० चनुरेंडीजीवनता आत्री अयादिसहित अंतपणानयी वि स्विनि आनी सादिसहितअंतसहितपणले ५१ संतश्पप्पएगाश्या । अपद्यवसियाविय। विश्पमुच्चसाश्या । सपयवसियाविय ॥५१॥ बमासनी स्विति न नृत्कृष्टीकही वीतरागें च० चनुरेंडीयजीवना आत आजपानीस्वितिअंअंतर्मुर्तजघन्य ५२ बचेवळमासा। नकोसेपावियाहिया। चनरिंदियानविई। अंतोमुत्तंजहणिया ॥ ५२॥ सं संष्याताकालनी सूचनकृष्टिथितिक अंतर्मुर्तज जघन्यस्विति च चनरेंजीका कायूस्विति तत्तेचठरेंडीकायाअध्यानरुपलेच संरवेद्यकासमुंवोसा । अंतोमुत्तंजहन्निया । चनुरिंदियकायविई । तंकायंतुअसुंचन पा जुनुमाए । अन् अनंतकाल्नो हत्कष्टोनिस पके अंअंतर्मुर्तेलपत्यकायर्या बिळांमैय के सपोनानीकायाचनरेंदोनी आंतकंपो चनरेंगे ०६० अएतकासमुक्कास। अंतोमुत्तंजहन्निया विजदंमिसएकाए। अंतरेयवियाहिये। For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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