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उत्त. ๆ
| रिग्
पण
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| याइवि अथवा न बेसीरहे
बा॰ अथवा न नरहे एमगुरूने समीपे पानिकों
१.३
आचार्य
वादि ॥ नचित्रे गुरुणंतिए॥ १९ ॥ प्रायरियहि वाइतो फगुरुमुनुपरे म प देषएाहारमोन्दनी जुo रहे साद करे एहबानो अर्थी
गुब् गुरुनी समीपे
पसाय पेहीनियागवा नववि क. किवारेपण च मूकीने
वा. बोलायोथको तु माबोल्यो 'न नरहे - १
क० किवारे
धको सिणिन्
नक
च्या० गुरु एकवारबोने० वारंवार बो
सावे बसे
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सं० सदाइ २० सावे ते
गुरु संया ॥२०॥ आसवं तेजवं यासने धीर्यवंत जo जनावंत जुन साबधानपणे सांभसे २१ बुडवत
थको
तेवा ॥ ननिसिद्य कयाइ ॥ चना आसा धीरो ॥ जने ० पोताने मासने ग० न नपूबे प्रमादिक. ए० निश्वे नं. से. संथारे क० कि पारेपणा प्रा० गुरुनीसमीपे
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जुत्तपति सये ॥ २१ ॥
बेगेनपू.
नोको
पु० पूबाई साग ॥ नद्या ॥ नैवसिवागनुं ॥ कयाइवि ॥ त्र्ागमुकुकुन॑संतो ॥ पुबेद्या
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