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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir या प्रप्रसा वार.जवा मगध नखं त्वांकनो साकरनो एक एपिकीपणा अनंतगुण , रूमीगेस्वादसु सुकललेस्यानो जाएबो १५ जे जेमगाएनाममानो अ-३५ खासकरसोवा । एत्तोविअपंतगुगो । रसोनसुक्काएनायचो ॥१५॥ जहगोममस्स गंधपासून होए सु• कूतराना ममानो जैजेम सर्पना ममानो एक एयकीपए। अपांत गुपों स.खस्या अ. गंधो। सुगमम्स जहा अहिमास्स । एत्तोषिअपंतगुणो । खेसाणंअप्पस स्तकृष्णा १ नील २ कापोत ३ एनएानो| न जेमसुगंधाकु० केवमादिकनुंफूसगंधसुवास सु-सुगंधसुवासपिपिसनाबाटताए। एक एक बाएं ॥१६॥ नमोगंध १६ जहसूरहिकुरुमगंधी। गंधवासापापिस्समारगाएं। होए एतो की परा अनंतगुणो सगंध होए पर प्रसस्त स्यानो ति बणपणा तेजो १ पद्म २ सकल ३ हवे खेस्याना जमकर विअांतगुणो। पसलेसापातिएहंपि ॥१७॥ फरस कहे जे १५ जहकरग करवत्तनो जेबी फरस गोगाएना वसदनीजीमनोजेबो करण फरससासागा ए० एयकीपण अनंतगुणो करण से सेस्यात्र स्सयफासो। गोजिमाएवसागपत्ता । म एत्तीविअपंतगुगो ।फरस खेसाएं एगअन् अप्रसस्त कृष्णा १ नीस २ कापोत३ जजेमबूबूरनामा वनस्पतिनों अतिसुहासो नभ्मारखानोफर्स स० सरिसनामा ||५१३ अप्पसबा ॥ १८ ॥ १८ जहबूरस्सवफासे नवएीयस्स सरिस For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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