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न. म.महर्षिक होए २५ न० सर्वथकी मो- मिथ्यातमोहनि जुज्योतिवनअ-सुधर्मादिदेवसोकथीमामिअनुत्तरविमान
प्रधान गयोबे कर्मजेहवी सुधी अनुक्रमें संव्याप्त संकीर्णदेवें करीएपांचविसेषणे कार महिहिए ॥ २५॥ नुतराइवि मोहाहि ॥ जुश्मता एपुचसो ॥
समाइना | विराजमानजे - आ आवासविमानएवा ज. जसवंत देर २६ दीदीर्घमान इविन स अतिदीपतो का काम | विमानने विषे देवताजे होए
पावंत होए
मनवांनिन किया इजस्केहिं॥ आवासाइ जसंसिपो ॥२६॥ दीहानया इहिमंता ॥ समिद्धा कामरून रूपनाकरण अततकासना नुपना संन्नेसरषा सदाए अन् सूर्यना कांतिथी अधिकप मला कांनि तातेपूर्वोक्त थानक गम्। ___ हार होए दीसे.पएा ..
जेनी २७ विमानमतें जाई विगो ॥ अगोववन्नसंकासा नुद्यो अचिमालि पला ॥२७॥ ताणिगएाएगीग
सि सिषीने "सं संजमने निसाघु वा अथवागृहस्व का पद जेन्जेकोई उपशमकरे अतिहे नि सीतली ते धर्मवंत सेवीने तपने
मूतहोए एवादेवताधाए २० ।-सोलतीने|| ति सिस्किता संजमंतवं लिस्काए वागिहल्लेवा जेसंतिपरिनिबुमा ॥२८॥तेसिसोशा
नागनिहा
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