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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ยป 5. दे० देवता सघसानी ४७ द० दस सहस्र बरस किं कृष्ण संस्थानी यिति ज० जघन्य होएप पत्यनु ० संष्यात श्र. ३४ ४२० | देवाणं ॥ ४७ ॥ दुसवास सहरसाएँ । किएका एवं जहन्नियाहो । पलियम संरवेद्यइमो | लागेएन० ननक्रष्टिथिति होए क० कृष्णलेस्थानी ४८ जा० जे क० कृष्णा पेस्थानी पिति निम० उत्कृष्टिसा० ते सकसमयन्यपिक कोसाहो कहाए ॥ ४८ ॥ जाकहाए । नक्कोसा सानुसमर्थमडिया । ज० जघन्य नीस लेस्थानी प० पत्यनो संख्यातमी लागवाजि ० नत्क्रष्टिथिति जा० जेनीस संस्थाज्ञी थितिन • नुत्क्रष्टितै स एक जहनेएांनीखाए । पलियमसंखंचनकोसा ॥ ४५ ॥ जानिलाएविखषु । नकोसा समय | समयअधिक एतसीधिति ज० जघन्य कापोतले स्यानी जाएाबी पपस्यनो असंष्यातमोलागते जघन्य स्थिति नुपेषिकीत तिवार | मझहिया । जन्नेकाए । पनियमसंषंचन कोसा ॥ ५० ॥ धकू जाएाकूं ५० तेएापरं पबीऊं कहीस ते तेजो लेस्या जैम सु० देवताना समूह ने जेते मकर्मु शिष्या ल० लवनपति वा वाएाव्यंतर ओ० ज्योतिषवैमा बोचामि । तेनसेसाजहा सुरगणाए । मतंगुरुके लवणवईवाएणमंतर। जोइसवे निक ए । जातना देवतानीस संस्थानी स्थिति भागसे केसे वैमानिक प० पलनुजघन्यन उत्कष्टपिति सा० सागरोपम जावें २० माफियाएांच ॥ ५१ ॥ लेस्यानीथिति कहेने ५१ पसिनुवमं जहन्नं । नक्को सान सोगरोदुन्निहिया For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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