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5. दे० देवता सघसानी ४७ द० दस सहस्र बरस किं कृष्ण संस्थानी यिति ज० जघन्य होएप पत्यनु ० संष्यात श्र. ३४ ४२० | देवाणं ॥ ४७ ॥ दुसवास सहरसाएँ । किएका एवं जहन्नियाहो । पलियम संरवेद्यइमो | लागेएन० ननक्रष्टिथिति होए क० कृष्णलेस्थानी ४८ जा० जे क० कृष्णा पेस्थानी पिति निम० उत्कृष्टिसा० ते सकसमयन्यपिक कोसाहो कहाए ॥ ४८ ॥ जाकहाए । नक्कोसा सानुसमर्थमडिया । ज० जघन्य नीस लेस्थानी प० पत्यनो संख्यातमी लागवाजि ० नत्क्रष्टिथिति जा० जेनीस संस्थाज्ञी थितिन • नुत्क्रष्टितै स एक जहनेएांनीखाए । पलियमसंखंचनकोसा ॥ ४५ ॥ जानिलाएविखषु । नकोसा समय | समयअधिक एतसीधिति ज० जघन्य कापोतले स्यानी जाएाबी पपस्यनो असंष्यातमोलागते जघन्य स्थिति नुपेषिकीत तिवार | मझहिया । जन्नेकाए । पनियमसंषंचन कोसा ॥ ५० ॥ धकू जाएाकूं ५० तेएापरं पबीऊं कहीस ते तेजो लेस्या जैम सु० देवताना समूह ने जेते मकर्मु शिष्या ल० लवनपति वा वाएाव्यंतर ओ० ज्योतिषवैमा बोचामि । तेनसेसाजहा सुरगणाए । मतंगुरुके लवणवईवाएणमंतर। जोइसवे निक ए । जातना देवतानीस संस्थानी स्थिति भागसे केसे वैमानिक प० पलनुजघन्यन उत्कष्टपिति सा० सागरोपम जावें २०
माफियाएांच ॥ ५१ ॥ लेस्यानीथिति कहेने ५१ पसिनुवमं जहन्नं । नक्को सान सोगरोदुन्निहिया
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