SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उ. ४२१ लेस्यापितिजंत्र १ पृथिव्यादिक समुचय३ समुचय जीव ३६ गतिमाश्री तिर्यच प्रकारें ज० नसंख्या १ असंध्या २ मनुष्यनी ३ प्रकार नु० ज० ॐ ३३ सागर ज० १० हजारवर्ष नुपस्यपनी संख्या तभी लाग नरकगति कृष्ण १ अंतर्त ३३ सा० अंतर्मु ० त्र्यधिक कमी से इजाएउ मीनरके लवनपति व्यंतरने ज अंतर्मुहूर्त अंतर्मुर्त www.kobatirth.org तेजो ४ पदम नी० नीस २ अंतर्मुर्त कापीत ३ तमुर्त | अंतर्मुहुर्त अंतर्मुहूर्त १ सा०पत्यत्रमसंख्या ३ सा० पस्य असं ३ सापस १० सा० 5 स लाग लोग अधिक मी लाग अधिकचीजें नरके | अंतर्मुर्त अंतर्मुर्त संभाग ३ सा पसच्य० १०३ १० सा० असं मी न० नपरेसमोअ पक्ष्यनो अर्स आग काश्कमोंटेरो For Private and Personal Use Only अंतर्मुर्त अंतर्मुर्त १० हजारवरस फू देवलोक मेदेवलोके अंतर्मु अंत अंतर्मुर्मु ३ सा० पष्य १०३० चरन नीसनी नृ० तेनुप १० समगर पप्पनी असं लाग जा मोटेरा सरनी १५५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सकल ६ अंतर्मुर्त १३ सागरोपमत्र्यंत फूर्त अधिक प उत्तर विमान अंतर्मुर्त अनु वरसईसलगा पूरबकोमिकें म. ३७ ४२१
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy