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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न ० जघन्य प० नेनुपरे ० असंष्यात में लागे अधिक न० नृत्ऋष्टि होए थिति ना० जाए बी. ते ० तेजुसेस्थानी ३७ मु०मुफूर्त तुपूरपोज० ज ४१८ पलियम संपलागहिया । नक्कोसाहोडिङ्ग । नायच्द्योतेनुलेसाए ॥ ३७ ॥ मुततुजला । | द० दस सागरोपमनपरे होए त्र्यंनरमुर्त अधिक जनकष्टि होए स्विति ना० जापावीप० पद्म लेस्थानी ३८ मु० अंतर्मुर्त पूर्ण दसनदही होतमुत्तहिया । नक्कोसाहोरविई । नायवोपन सेसाए ॥ ३८ ॥ मुतद्वंतुज जघन्य स्थिति ति० नेत्रीससागरोपमनुपरे अंतर्मुहर्त अधिक न० उत्क्रष्टि होइ स्थिति ना० जाएावी सु० सुकल लेस्थानी ३२५ ए०ए हला । तित्तीससागरामुतहिया । नक्कोसाहोपवि । नायवी सुकलेसाए ॥ ३५ ॥ एस निश्चे सेस्थानी Jo समुचेथीति होए कही च० च्यार गरिने विषेए० गते कही ने ले० लेस्थानी स्थिति कह खसुसेसाणं । नहेा नववन्निया होई । चन्त विगई सुएतो । ४० हवेनरकगति सेस्या स्विति दन्दसहजारबरस to कापोतले स्थापित जघन्य हो० होए ति० त्रिए सागरोपमनुपरे वामि ॥ ४० ॥ क दसवाससहसाई । कालविश्जहरिया होई । तिएकदहिपलियमस | पसनुं अ० असंष्यात लागेन• नत्कष्टो ४१ नि त्रसागरोपमने प० पष्यनोत्र्यसंष्यातमो लाग जघन्य नीन् नीस संस्थानी यितिदन्दस ४१८ लागंचनकोसा ॥ ४१ ॥ तिष्णुदहिपसियमसंखलागजहला नीसकिई । दसजदेहि सांवन्तुव For Private and Personal Use Only अ०
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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