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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न समूहनी श्रेणी प० ईर्षेकरीष चि चितनोधएीबाधकर्म ज०जे तेजीवने पुश्वसी होए हु० पुषकारिया विपाक इहलोकपरसोक || अ-३२ ३० परंपराजे । पञ्चचित्तोयचिपाश्कर्म । जसे पुणोहोराहयिवागे ॥ ॥ नैविधे १८ ला० लापनेविषयासाने विषेर रहिन्यको मनुष्यवि सोक ए. पूर्वेकहीने उषनासमूहनीश्रेएीकरीना ननिपाए नपरमाएलसलावे विरत्तोमानविसोगो । रहिनयको एएणकोहपरंपरेए । नक्षिपई लवमशे सारमाहेपाविबनोज जमपाएगीएफु कमलनुपान; विपाएनाहे तिमविरक्त मनुष्य ए. एणिपरें पंचरंडीनाअर्यरूपन विसंतो। जलेएवापुस्करणिप्पलासं । ॥ ॥ नतिपाए ५० एविदियबायमएस्सअद्या स२ गंधक रसवलीमन अ. अरयो - अपना हेतुबे म.मनुष्यनेरा केवामनुष्यनेरा रागद्देषरूपियामनुष्यने ते तेंडियादि ॥ जे संकल्प विकल्पादिक जे ने पुरकस्सहेन मयस्सराश्यो । तेचेवयोवंपिकसायकनाअर्यि पूर्णनिय थी. थीमाएपए किवारे ० पुषनेवीयराग संद कहेवीतराग न० का कामनीगजेते सन्समतात्मावनपा स्कं ॥ नवीयगास्सकरिंति किंचि ॥१०- ॥ थो, २० नकामलोगो समयंनुविनि । मे न याच्ऽवि० भोगकामलोगपएा नुतिननुपजाये जे. जेजीवतेप्प देषकोएनुपजावेजे ते पाम्याशब्दादिकनुपरेरागीसाने ३०९ नयांविनोगविगतविति ॥ जेतप्पनसि परिग्गहेय। सोतेसु पीरागीजीयतिधनेपोधीन 'विषयन षिर्ष For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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