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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org नः|| अ. अदत्तनुवर्ज— अनिरवथ्यए ए. एषणिकदोषरहित गि० पहयोनिदोष आहारसेयो अ अनि पुक्कर २८- वि० बरते अ.१६ १०० अदत्तस्स विवधएं ॥ अवधेसणिधस्स गिहाणा अविरुक्करं ॥२८॥ विरई। अरु अब्रह्मचर्यना का कामलोगरसना जाणीने नुग्रम महाव्रत ब्रह्मचर्यरूप धारए व्रत धारवो सु अनिहे कर अबलचेरस्स कामलोगस्स नएा नग्गंमहत्वयंबलं ॥ पारेयत्वंसक्करं ॥२॥ ध० धनधान आदि पे दासनासमूहने विधे पर परिग्रहनुपरे ममतानुवर्जेबू सर सर्व पारंलनो परित्याग नि ममतारहितपएक यगधन्नपेसवगेरू ॥ परिग्गहविवधता ॥ सच्चारलपरिच्चान ॥ निम्ममनसा अनिउक्कर ३५ च अनादिकच्यारपण . रा रात्रिलोजन व० वर्जयूं सन् घीप्रमुषचासि राषयानुं संचयतेहा करं ॥३०॥ चन विहे विग्रहारे। राईलोयावधपा ॥ संनिहिसंचनचेव ॥ बच् वर्जवो सुम् अतिक्कर ३१ बुत्यूषबपि समाताडनु न नष्णानीपनो परिसह दंदसमसानी वेदना वद्ययवा सक्करं ॥३१॥ बुहां तएहायसानुएह, दसमसग्गवेयएा । अाक्रोस परिसह उन्उधकारीनुपाप्रयत० तृपानी फेरस जन मेनोपरिसह निश्वे ३२ ता चपेटादिकनो प्रहार भागसिप | १९५० अक्कोसा उरकसेधा तपाफासा जनमेवयः ॥ ३२ ॥ तासगाँतबगीचेव॥ मुपकराजल. For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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