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फएकापक्तिना घणी साधु १७ ५० धर्मरूपियामारामनेविषे विचरे साधु धिः धौर्यवंत धक धर्मस्परथमवर्नवानेविगे) ध धर्मस्वपत्र्या-म१६
परिहाएवं ॥१॥ धम्माराम चरेलिरकू विश्मं धम्मसारही ॥ सारथी धम्मारामे | राममेविषे र रातो दमलेंडी ब्रह्मचर्यनेविषेसमाधिवंत देव देववैमानिक ज्योतषी देवदानवलवनपतिगंधर्व जन्झर राक्षसए
रएदंते . . बलचेरसमाहिने ॥१५॥ देवदागवगंधच्चा , जस्करस्कसकि व्यंतरनीजातिकि। बंब्रह्मचारीनेनमस्कार करे ऊउकरब्रह्मचर्यनेजेपुरषकरे पाखे ने पुरषमे एक एब्रह्मचर्यरूपधर्मधु निश्चलानिरंतरसदाए नरा नरादि बनयारी नमसंनि फुकरंजेकरंनिते ॥१६॥ एसबम्मे धुवेनियए , , ने सा शाश्वतोडे जिन्नीर्थकरें कयो बे सिम्पूर्वसीधावर्तमानकाले सीजे चाच अवधारो एवं ब्रह्मचर्य सिसिफसेआगमिएँ सासए जिएदेसिए सिहासिशंतिचापोएं
सिशिरसंतित कान तेमअनेरा इ इमाऊं कळंबु १७ एब्रह्मचर्यसमाहिगएासोस अध्ययनंसंपूएं १६ ॥ सोसमेअध्ययने ब्रम्हचर्यनी हाबरे अनंताजीव तिबेमि ॥१७॥ तिबलसमाहीअक्षय षोमसमं सम्पत्तं ॥ १६ ॥ गुप्तिकहीने तो पापथानकनेवर्जितेमाटे १७ जेजेकोश्कदीक्षालीधी साधु अधप्रथम धर्म साललीने विकविनयमार्गर||१६५ में अध्ययनमांपापग्रमानोसरूप कहे जे जेकेई पवईएनियवे चम्मरुणित्ता विएन हितमा
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