SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फएकापक्तिना घणी साधु १७ ५० धर्मरूपियामारामनेविषे विचरे साधु धिः धौर्यवंत धक धर्मस्परथमवर्नवानेविगे) ध धर्मस्वपत्र्या-म१६ परिहाएवं ॥१॥ धम्माराम चरेलिरकू विश्मं धम्मसारही ॥ सारथी धम्मारामे | राममेविषे र रातो दमलेंडी ब्रह्मचर्यनेविषेसमाधिवंत देव देववैमानिक ज्योतषी देवदानवलवनपतिगंधर्व जन्झर राक्षसए रएदंते . . बलचेरसमाहिने ॥१५॥ देवदागवगंधच्चा , जस्करस्कसकि व्यंतरनीजातिकि। बंब्रह्मचारीनेनमस्कार करे ऊउकरब्रह्मचर्यनेजेपुरषकरे पाखे ने पुरषमे एक एब्रह्मचर्यरूपधर्मधु निश्चलानिरंतरसदाए नरा नरादि बनयारी नमसंनि फुकरंजेकरंनिते ॥१६॥ एसबम्मे धुवेनियए , , ने सा शाश्वतोडे जिन्नीर्थकरें कयो बे सिम्पूर्वसीधावर्तमानकाले सीजे चाच अवधारो एवं ब्रह्मचर्य सिसिफसेआगमिएँ सासए जिएदेसिए सिहासिशंतिचापोएं सिशिरसंतित कान तेमअनेरा इ इमाऊं कळंबु १७ एब्रह्मचर्यसमाहिगएासोस अध्ययनंसंपूएं १६ ॥ सोसमेअध्ययने ब्रम्हचर्यनी हाबरे अनंताजीव तिबेमि ॥१७॥ तिबलसमाहीअक्षय षोमसमं सम्पत्तं ॥ १६ ॥ गुप्तिकहीने तो पापथानकनेवर्जितेमाटे १७ जेजेकोश्कदीक्षालीधी साधु अधप्रथम धर्म साललीने विकविनयमार्गर||१६५ में अध्ययनमांपापग्रमानोसरूप कहे जे जेकेई पवईएनियवे चम्मरुणित्ता विएन हितमा For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy