SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु संन्याश्रवनोरुधनार निकटासे सो कषायादिकरहित निर्मत स्रस ६० जिन लाषित धर्म सः मिथ्या निनिश्लप फलका अ-३ ... कर्म रजने ११ . एवा लूल्जीवने वादेक दीरहित चि० रहेठे पो सोमे संयुमे निडुपोरयं ॥११॥ सोही नऊय लूयस्स॥ धम्मो सुस्स पिवई। निबाएं परम चपत सिंगोजेमअग्नि स्वस्उपएं पाभे पिच्दासोने कर्मना हेतु जे मिथ्या १० संयमने विनयने पुष्टकरे खंड पाठ पृथ्वीन ओलायनहींतेमधर्मवंतजीव निरात्तिपफ पामे, ओलायनही १२ . वादिक तेने कमादिके करी काचुं जाई। घयं सित्तेव पावए॥१२॥ विगिंच कम्मुगोहेन । जससंचिएकरनिए ॥ पाटवं लाजनन सरिरघुसन्औ नग्चो जाइपहोंचे दिदिशीने विच्अनेकप्रकारमा सीव्रतादिक शुद्ध जन्देवता होयनु प्रधान माहे म. दारिक शरीर बांमीने विष १३ क्रियाएकरी प्रधान सरीर हिच्चा॥ नई पक्वमई दिसं ॥१३॥ विसायसेहिं सीहि ॥ जरका उत्तरजतरा ॥म अत्यंतरज्ज्वस चंडमासूर्यनी मन्मानतथिका अवतीअपाचचवो बांडता अढोमांडे पम्चांडे का काममो कान्जेवाचिन वे क्रिय परेंदि तेजेंकरी दीप्ता नयी १४ देवताना गाहे रूपना करनार ५ हासकाव दिप्पंता ॥मन्त्रंता अपुराच्चयं ॥१४॥ अप्णिधादेव काम्माएं । काम रूवाविधि For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy