SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra न १३५ www.kobatirth.org तंत्र ते धन सर्व सा बसेबेए घरने विषे एक निश्वेतुमारे १६ साहीमिवतुझं ॥ १६॥ सजनेकरी संथाए अथवा काठ कामगुणेकरी स्याएं चेन्पूऐं एवा कामगुणेहिंचैव श्रवधारणे तेमाटे वासाधु होए अ० अंगीकार करीने निर्दोष लिक्षाने | गम्मलिरकं ॥ १३ ॥ हवेपुरोहित बोल्यो ११ जेम घरततितिसनेविषेतेस एवं एमज हे पुत्रजा० प्र.१४. धधकरी किं सुंथाए धर्मनोपु. लारनुपामवानो स घोण किंधम्मक राहिगारे अधिकारने विषे सयो सब साधु होएगुगुएना समूहनो धरणाहार बच्लोकोत्तर बिहारले जेनोए समणालविस्सामो गुणोहधारी बहिविहारात्र्मलि जब्जेमवसि अग्नि अमरीकी अबतामध्ये कंपना रवी० दूधनेदिवे जहाय. writerritoriat पीरेघयंति स सरीरविषे स० मा स० बतोनवोनु पजे सरीरविएासे तिबारे रहे नहीजी सरीरंसि सत्ता समुचश्नासश्नावचिने ॥ १८ ॥ रूपपणामाटे य० निजे लगी निः नित्यसदा च्यात्मातमाटे षोटोसदह अमुन्तलावाप्रमुत्तनावादि य होइनिचो मन हे निययं १८ लमहातिले जेम एमेव जाया | हवेकुमार नो० नथी इंडियग्रहवा जोग्यमात्मा बोल्या नोइंद्रिये गि बोते निययन विश्व अस० एजीवते बंद कर्मबंधने कवावे अव ते मिथ्यातले हेतु हेतुकारए जेनी एबीबंध होए संसार चन्वतितीर्थकरे १३५ संबंधी ॥ संसारहेतुं चवयंनिबंधं ॥ १९७ ॥ बंधबंधने संसारन् संसारमाहेपरिनमा करवानी हेतु कारएा यंत्र कहे १९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy