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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नज जेमअम्हो ध धर्मने अजाएताथका पा. पापने पुराकर्मने आ करना या सोअज्ञानयको जन्रोस्योथको अ.१४ १३६ | जहा वयं धम्ममयागामापा पावं पुराकम्ममकासिमोहा. नरशमाएा पर अतिरका करनायकापास त हवेनेने लुचलि विरूपापकर्मनित्रै समाचरुनही २५ सो सोकनेविषेकिल्लूने खोकेकेहवालोकनेषि परिरस्कियंता ॥तयिका तव लुजो विसमायरामो॥२०॥ अशाहयंमि सोगंमि अरु सन्मुरबपीना सन्सर्वदसविदिसने पिपै प० अतिहेयीटो घेरयोडे स्यानेकरी अन् तीरादिकनीश्रेए पनुपरेपमतीथकीने] पाम्यूठेपुनःकथनूलेजोके सच्चन परिवारिन ॥ अमोहाहि पतीहि ॥ करी तीरादिकनीश्रेण केयी अन्मोचअल्लूसिनेमाटे गि० घरनेविषेन रतीने न पा हये पुरोहितपूछेले. के कोपाहहएयोपीनयोधको लोक के कोणवलीप चौटोसोक | गिहिं नरईसले ॥ २१॥ ५ के एअशाहि लोगो केएवा परिवारिने । काच कौपावसि अन् अनूसवापानी एकहीजाम् हे पुत्र चिंचिंताकरोडो ने माटे ऊ निश्चे मेमुजप्रतेएविचार हवेकुमारकहेडे मन्मरोहणोपी कावा अमोहावुत्ता जाया चिंतावरोझमे ॥ २२ ॥ कयो २२ मच्चएााहने सो. मोसो सोलोकजराइचोटो है सोक अन्यत्नूलवाएानी श्रेणी रदिनरात्रनीकही एचएमहेनात विजाणे २३ जान्जेजेजाए। १३६ - जराएपरिवारिने अमोहारयएीवुत्ता ॥ एवंताय वियाह ॥ २३॥ जाजावच For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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