SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नु० जुलूकष्टोनीव . न वसे रहे काल कालअनंतो अनंतीनुत्सर्पपी अदिपुगस परावर्नअनंतानो दुधेअंत सं समा अ१० में नुक्को, संजीवो नुसंवसे कार्यसंखाइयं आये तेमाटे समा यमात्रपपा हेगौतम मकरप्रमाद ८ व वनस्पनिकायमांहे गयोयको, न नकटो जीय बसे रहे. काळ कापत्र यंगोयममापमायए ॥ ८ ॥ वास कायमगने नक्को संजीयो जुसंवसे कालम|नंनो अनंति नल्सर्पपी अहि पुद्गलपरावर्तअनंतानो पुषे 'सं-समयमात्रपपा हेगौतम मा.मकर प्रमाद ए बेडियकायमा एतंदूरतं अंत श्रावे ते माटे समयंगोयममापमायए ॥९ बेइंदियका हे गयोयको नुनुक्रष्टो जीव वसे रहे .. का कालसंध्यातीएवी सर सज्ञानामने जेनुं एतसो संख्याता हजारवर्ष नेमाटे | यमगर्ने । नक्को संजीवो नसंवसे काउंसंवेध सन्नियं स समयमात्रपणा हेगौतमभकरप्रमादमयाप्रमादी १० ते एमनेंडिकायमांहे गयोयको न उत्क्रष्टो जीव नु वसे रहे कार काससंष्या। समयं गोयम मापमायए ॥१०॥ तेइंदियकायमइंगर्ने उनको संजीवो जसंवसे कार्य संस्थि । नोएवी संत संज्ञानामजेहनी एतलोसंष्याताज़ारवर्ष सन् समयमात्रपणागौन्हेगौतममाध्मयाप्रमादीमकरप्रमादरच० एमन्चनुरिटीलाथमा | व सन्नियं मारे समयं गोयममापमायए ॥ ११ ॥ चरिंदियकायमगले यका For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy