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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नु. ब० सं॰ संरब१ चक्र २ गदा ३ धरएाहार अ० अनेरे वैरीएं नथीहणाएं ब. बस जेनी सुलट एक एम संषचक्कगयाघरे uthor • बसे जोहे ज० जेमतेम ते वासुदेव १०३ जहा सेवासदेवे ॥ एवं ६६ होए बऊ श्रुतहवे नृपमाबासुदेव सामान्यबद्ध श्रुनरूपी ए रथे बेसी चाले पाले कोइ परमलिए रथपानी बसाएनहीं ग्यान १ दरसन २ चा हवइबस्सु ॥ २१ ॥ रित्र ३ ९३ रूपसंरबादिक नोधरणाहार२ सुमतेकरी बलवंत ३ कर्मसत्रूने जीववासुलट ४ए १ मीनुपमाकही २१ ज० जेमते चक्रवर्ति चक्रवरतवानो स्वभावबेजेनो-च. चतुरंगी सेन्याएंकरी [अ० सत्रूनो त्र्यंतकीघोडेम • मोटीऋद्धिनोघणी च० चन्दर तनोन्म जहासेचानुरंते ॥ चक्कवहि महिहिए चनुदसरयऐगाहि 11. ए.एम होए बहुत बेनुपमा ग्यान १ दस्सन २ चारित्र ३ तप ४ एच्यारेकरी कर्मरूपसत्रूनो अंत की धोबेजेने बहुश्रुतरूप चक्र जितनी वई ॥ एवं हवइ बस्सुए ॥ २२ ॥ ज्ञारूपच करी वर्तिबे ने माटे चक्रवर्ति महात्रत रूप तथा सबधिरूप महाब्रतनो धणी महाऋद्धिनीधपी चन्द पूर्वरूप चन्द्ररत्ननो धणी अथवा १६ पूर्वाचित ज्ञानरत्नेंकरी सकल जीवनो अधिपतिनाथ ए ८मी नुपमा कही ॥ २२ ॥ ज्ञानु धळे पाच हाथने विषे पु० सत्रुनापुरनगरने स० सकेंद्रानेदेवनो अधिपति एक एम होए बहुश्रुत नुपमाऐ हवे श्रुनज्ञानरूपणी सहस्त्राक्षीबे १ १०३ to जेमते हजार ते सरषो देषवोजे जेने तेह ब० बजहा से सहसरके संकहिए पाएगी पुरंदरे ॥ विदारणहार सक्के देवाहिवइ ॥ एवं हवइबऊस्कए ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only त्र्य. ११
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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