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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नु. १०५ www.kobatirth.org एवं हवई बस्तुए ॥ २८ ॥ बे ए १४ मीनुपमा जे० जेमतेमेरूपर्वतमा | कही ||१४|| २८ || जहा सेन गणपवरे प्रतिपूरपा लस्योजेम ए० एमहीए बहुश्रुतरुवे नुपमामसेचे साधु साधवि श्रावक श्राविकाना समूहनो आधार ते रूपीनेकोग २० प्रमादादिके नदर . ११ कोवार बिराजे एवं हवइ बहुस्कए । २६ ।। चोरादिकना लयथी धर्मध्यान लोग जकमादिकें करी लसीपरें राज्योबे | ३ नाशा मंगळपांग कालिक मुत्कालिक सूत्ररूप ज जेमते वृक्षमांहे प्रधान जंक जंबूवृन्द बीजूं नाम सुदरसन नाटियएवेनामें देवनो धने लख्यो बिराजे. ए १२ मी नृपमाकही ।। २६ । जहासा डुमाएा पवराजंबू नाम सुदंसणा ॥ एाहिय निवासचे ते अंबूवृक्ष विराजे एक एमहोएब श्रुतहवेनुपमा सामान्य साधु रूपवृन्दामांहे प्रधान बहुश्रुतरूप जंबूदृष्प सामान्यसुख रूपी या बहुस्सु ॥ २७ ॥ अमृतफल व्याप ते मारे लसादरसनमाटे मला सुदरसन २ पाटि ज० जैमने सकलनदीमा हे प्रधान स० नदी समुद्रमांगइलसी सी० सीतानदी भी ० नीलवंतप जहा सनईएपवरा सक्षिसासागरंगमा सीया नीखवंतपवहा तिथी निकसीबिराजे ए. एमहोए बहुश्रुत हवे नृपमा साधु रूपनदीमांहे प्रधान निर्मण श्रुतज्ञानरूप जपें भरी नदी २ सा० मुक्तिरूपसमुद्रमाहे मसी बहुश्रुत रूपिणी सीता मोटिमांहे ६ नीलवंत भोटा उत्तमकुलधी निकष्याने प्रगटपो प्रधान सु० विहे मोदोमंद एबेनामें पर्वत ना अनेक प्रकारनुषपीकरी देदीप्यमानवकोपि १०५ सुमहंमंदरोगिरी नाणोसहिषद्यलिया । राजे स्स देवस्स एवं हव देवाधिदेवनो बहुश्रुतने विषेवास ए१३मीनुपमाकही || १३ ।। २७ ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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