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अ.२
मन- म० मानुरु- फ चापy चीर्यवे पूर्वकाराजे सिसिद्ध हरू होइ अथवा दे देवता होइ अन्थोमारह्या बे मन्मोटी ऋदिना . | धिर एनसेनेहयीनुपनूएवा देनें गंगीने पूर्णे
कर्म जेनेएवा धपी होइ इ इमऊं मस पकपुश्वियं ॥सिद्धेवाहवईसासए देवेवा अप्परएमहिहिए इतिबेमि कऊं ॥४८॥ इएविनयसमाधि प्रयम अध्ययन संपूर्ण थयु॥१॥ हवे बीजू सु० सां मेर आद हे आनुषावन क _ विनयचन सहेपमे ते माटे परिसह अध्ययन प्रारंभेडे..
नष्यो मे ते भगवं | ॥॥ इति विणयसमाहिपमं अक्षयएं सम्मतं ॥१॥ सयं मे आनसंतेथून नेज्ञानवंते ए एमकह्यो. इए बार बावीस परिसह सच तपसि ज्ञानवंतें मक महावीरे काच कासवगोत्री
जिनसासनने विधे गवयाएवमस्कायं इहवस बावीसंपरिसहा ।। समोणं नगवया महावीरेएं कासवेष फप्रकण्यकिया अपजे निसोधु सोच गुरूनीसमीपे ना जाएीन परिचत करीने अच परिसह नि गोचरीने विषे. प. मवर्ततोयको ___जाएी कोई सानसीने अभ्यासकरीने जीतीने पवेश्या । जे भिरकू सोच्चा नच्चा जिच्चा ॥ अभिनूयभिरकायरियाए। परिचयंतो
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