________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नः सं० संजय नेसंनयराजा च० डांगीने रान निर निकाल्यो जिजिनसासननविषे गन्गर्दनासिनाम ललगवंतपून्य || म.१८ १७५ | संजन चश्ने रई ॥ निरकंतो जिएसासणे गद्दलालितस्स लगवने.
अ. अपगारने समीपे १५ कि राजनेडांगीने पर दीक्षा लीधी रख तिहांमार्गमाहे जातां | प० संजयमुनीमनेकहेडेनन आएगारस्स अंतिए ॥ १९॥ चिच्चारजं पवेइए खत्तिनु खत्रीराजर्षी परित्नासई जहा मनालंदीसेढे विकाररहिन बाह्यरूप प्रसन्नविकाररहित तेममनप्रयतेविकाररहित२ किग्नामताहरोकिंगोत्र नेदीसश्रूवं तक जाहरु ... पसन्नत्तेतहामणो ॥२०॥ किन्नामे किंगोत्ने किसोक किस्याने अर्थ त्रिकरण शुद्ध क्रियाकरे डेमा जती कर के प्रकारे प० संघले आचार्यादिकने का किया प्रकारे विनीत शिष्यम कस्सबाए वमाहुणे पकंपादत्धुरे कहपमियस्सी बुद्दे ॥ कहंविएीएन्तिपुच्चई। कहिये २१ संजयमाहिदै संजनीराजसषी पत्री राजरुधीभनेकहैडे नतिमगोत्र गोल हेगौतम ग गर्दलालिमुनिमारोआचार्य । २१॥ संजन' नामनामेणं ना नामएनामे तहा गोतेएगोयमो गहनालीममायरि
पिक शुनज्ञान अने चारित्रनापारगामी मानविनाक्रियानाकरणहार२२ १० ८ क्रियावादि ८४ प्रक्रियावादी ३२विनयपांदीपलि १७५ या विद्याचरणपारगा ॥२२॥ किरियं अकिरियं विणयं ६७ अज्ञानवादी ४ एवं २६३ मिष्यादा।
For Private and Personal Use Only