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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ चं चंद्रमा न. नन्नषत्रमाहेप्रधान ध० धर्मनापरूपकमांहे कान्का सबगोत्री श्रीमहाबीरमधान जजेम चंद्रमाने चिव्यहादिक तिष्ठेले पं。बेहाथजो- अ. २५ धम्माणं कासवोमुहं ॥ १६ ॥ १६ जहा चंद्गश्या चिवति पंजलिनमा ताथका वं॰ गुएास्तवताथिका नन्नमस्कार न०प्रधान विनय करवे करी हाव्हरए हारबतानिष्ठेने नेम रिषलदेवपए। पोते देवताना) अब्जज्ञत बंदमानमंसंता ॥ नुत्तमं माहारिणो ॥ १७ ॥ इंद्रादिक सेवा करे (प्रजाए त्वना जाएाबे ज• जज्ञनाबादना कितत्वज्ञान अविनीने सं• संपदा तेना जाय मू० मोहवंतत्र्मज्ञान सन् स्वाध्याय मनेत तपत्र गाजन्नवाई करणाहार विद्यामाहा संपया ॥ मूढासझायत्तवसा एकरखे जांए लालस्मराषेकरीढांकी इ० अग्निनीपरे विप्रवे १८ हवे । जे० जेकोई लोकनेविषे ब्राह्मण को ० अग्निनीपरें म० पूजनीक लासबिन्ना इवग्गिएणो ॥ १८ ॥ सुपात्रनुरूप जेलोएबलबुत्ती !! जब जेम अग्नितेम अगिवामहिन स• सदाए कु० केवलज्ञांनीकहरूं जेने ब्राह्मणा तेने व ० अ करूं ब्राह्मए १९७ जो० जेयासक्त न होए मा सयाकुसलसंदिवं त्वयं बूममाहणं ॥ १२ ॥ जोनसबागंतु जहा ॥ | स्वजनादिकने स्थानकें। पब्बीजेथान के जातोयकोन• बेदनकरेन्प्रथवा प्रेवर्जा रुरतियांमेतीर्थ करना वचनने विषे तं तेनेामे करूं ब्राह्मण २७४ वीने पवयंतोनसोयई ॥ सेतोयको रमईत्र्मद्यवयांमि । तंबयंबूममाह ॥ २० For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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