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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क० अनुक्रमेएनघणुसुरखी ल० होए म कथंधु १११ ३० शनिश्री प्रमाद स्थान अध्ययन बत्रीसमें संपूर्ण ३२ | अ.३३ कम्मेणअच्चंतसुहीमवंति । निबेमि ॥१११॥ इनिप्पमायगांअभयएगबत्तीसमसंमत्त॥३२॥ ३६ बत्रीसमांअध्ययननेविषे प्रमादना स्थानक कह्या नेप्रमाद अपारकर्म यो जंबूमने सुधर्मा स्वामी कहेश पकी जीवकर्मबांधे ते ३३ मा अध्ययननेविषे - कर्मनी प्रकृति कहे अनकम्माइंवोगामि। कहसुं अा अनुक्रमें ज. जेमबेआरकर्मतेमअनुक्रमें जेएकमेंकरी बंधारो एजीब सं संसारनेविषे पर लमेनयाांषे आम्जेम्पा आएपुधिजहंकम्म। कुंकझंडं जेहिबद्दोअयंजीवो । संसारे परिवत्तई ॥ १ ॥ योध्योहा।। ना ज्ञानन आवरे लेमन्सूर्यनी कांतिने वादत ढांके लेमतो दंदरसन केहेता देवयूं ते आठ ढांके तेम वं वंदनीकर्मनमकपरमया नागस्सावरणिधं ॥ ज्ञानावररणी करम दंसगावरांतहा । + पागनीसपमा वेयणिधं तर तेममोहनीकर्ममद्यपीधीचपमा अा. यानुषाकर्मना हमेनीनुपमात तेमजएहये कमी ना. नामकर्मवीतरागनीनपमागो गोत्रक तहामोहं। आनकम्मतहेवय ॥२॥ना नामकहेले नामकम्मंचगोतंच मनीकुंभारनी सुपमा अंतरायकर्मनी नारीनीनुपमा ए ए0प्रकारे ए सघसाएकस अन् आरकर्मसंक्षेपयकीजाणवा एमूलप्रकृतिकहबेहवेन ४०३ अंतरायंतहेवय । एवमेयाई कम्माई । अवेवनुसमासन ॥३॥ त्तरप्रकृतिकहेले ३ || For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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