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लालगवनमहातमयंन संच वैरागभाव्यो आपूतीने मातपित्ताने पर परिवयं अा अागारमए १६ जन्ग-२१ | नत्क्रष्ट लगवं परमं संवेगमागने ॥ आपुच्चमायापियरो। पवइए अएगारियं ॥ १० ॥ जहि|| सं स्त्रियादित मापनश्री मोद्याफि मन्मोटा मोहनु हेतु क. संपूर्ण ला लायन हेतु पचारित्रपर्म अरुसं सजननोसंबंध खेसहोए
तेस्त्रीपनादिकगंगीने तुसंगय महाकिसं । महंतमोहं कसिएलयावहं॥ परियाययम्मंचलिरोयएद्या । व पांचमहाव्रत सी दोषरहितआहार सिएने नुत्तरे अन्दयासत्यचसी अ अदत्तनोत्याग न निवारपी अपरिग्रह गुणा महाव्रतसेवेने ५०.२२ परिसहा षमेबे ११
ब ब्रह्मचर्य नोस्याग वयाई सीखा परिसहेय ॥११॥ अहिंसस्सचंच अतेणगंच । तत्तोयबलं 'अपरिग ___पपमिवर्जीने पंच पांचमहानतने आ पाचरे पन्श्रुनचारित्ररूपधर्मनों जि तीर्थकरनो सन्सजीवनेविषे
नपदेस्योसिद्धांतनो जाग || हंच ॥ पमिवधिया पंचमहत्वयाईचरिज धर्म जिया देसियंपिक ॥१२॥ सधेहि लूएहि
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