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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | तिस्मरण स० नपर्नु सरणे समुत्पन्ने सीलहं गुएान्प्रागरं ॥ ५ ॥ कऊं जाए ..ए एहवी रूप कमन्नेसिं यागर तपेहमियापुते न. पा. देवे स तपसीसाधु संन्सजतीने त. तप १२ लेदनालियह संसतरलेद संजमनो घरदार सी० मढारसहस्त्र सीलंगरूपीरुविंत प्र. १९० १८५ पासई समए संजयं तव नियम संजमघरं ॥ गु०ज्ञानादिकगुरानो | तब तेजतीने देषेवे मित्र मृगापुत्र दिवदृ‌ष्टि ० एमिलते के दिडिए प्रामिसाइनुं दिदीले पूर्व मच मे. पूर्वलव ६ सा साधूने दरसन एके तन्तेमृगापुत्र दिवं पुत्रमपुरा ॥ ६ ॥ साझस्सदरिस नस्स मोहगयो मोहनप सम्यो अथवा मूढने बस जात जातिस्मरज्ञान स० उपनु ७ गयस्स संतस्स पोतो तो लवें आयो ऋष्परिणाम सोब्सौलनिक एकेमो झवसामि सोइ ॥ मोहं देवलोक थी चू० चव्योयको मा० मनुष्य जाइसरणां समुप्पन्नं ॥ ७ ॥ देवसोगंचून संतो ॥ माएक संग संज्ञी पंचेंडीने जे नाव ज्ञान उपजे ने ज्ञानजाति जाब्जाति सब उपनेयेके पु० पालसी जाति जा० जा संलवमागर्नु. सन्नि ना। समुप्पन्ने स्मरणानुपनुं जाई सरणं पुराएायं ॥ ८ ॥ जाई पु म मोटी ना पीनेस समरीस लारी पोन पाडली जाति सा चारित्रपणापु० पूर्वेपास्युहनु" १८५ ॥ मियापुत्तेमहिढिए ॥ सरइपीराणियं जाई. ॥ सामसंचपुराकथं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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