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नमाइ ॥ ११ ॥
"मित्र मित्रनु र एकांतपरपूढे क० रूमाने मिन्तस्स || रहे जाएबने अ० जातिवंत नित
नु..
अ. नकरेवति
कोइनेतिरस्कारत्र्यमूकप० दीर्घकाले क्रोधने च० पुनः नकरे ६ मि० जे साधुमित्राएपोकरतो होए तेंमित्रा सुश्रुतज्ञानने ११
१०. प्रपंचा हिरिकवर करे ५ पबंधं च नकुबइ मितिद्यमाणो लयई एकरे ६ सुयं स
पामीनेन करे अहंकार ११
कलिपा पोतानी प० परनेमधिनघाले न० बजिमित्रनुपरे कोपनकरे • मियकारीयापा
नय पावं अपराध परिस्केषि
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नयमित्ते सुकप्पइ अप्पियस्सायावि ला० बोजे १२ क० वचननोकलह ५० माऍाघात तथा तेममरवर्जएाहार बु० तत्त्वनो
बुधेय
कलाण लासइ ॥ १२ ॥ कसह रुमवचए हि० लज्जावत पर इंडियादिकनो गोपबाहार सु० रूमोहोए विनीत ३० एवी कहिए १३ बरु बसे कु० गुरु अभिजायए हिरिमं परिसंखि सुविशिएति बुच्चई ॥ १३ ॥ बसे गुरुकु नास घामाने विषेनि सदाएं जो० गुलजोगसहित ध्यानादि तपसहित पि० सर्वजीवन मियकारी पिन मियकारी वचन बोलाहार वेनिचं आज्ञारहित जोगवं पियंकरे ११ पिचाई ॥ से एवो होए ते ज्ञानग्रहणाचारित्रने स० पामीने. जोग्य होए हवे बहुश्रुत उपमाएंकरी कहेने १४
नवहाएणवं
जे० जेम संषने विषे दूध घालोयको दुबैप्रकारेपपा सोलते एबेचोषा १०० जहासंरवमप्पियं निहत्तं हनुधिविरायई उपमा
लाजनमा
| सिरकं सडुमरिहई ॥ १४
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