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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नमाइ ॥ ११ ॥ "मित्र मित्रनु र एकांतपरपूढे क० रूमाने मिन्तस्स || रहे जाएबने अ० जातिवंत नित नु.. अ. नकरेवति कोइनेतिरस्कारत्र्यमूकप० दीर्घकाले क्रोधने च० पुनः नकरे ६ मि० जे साधुमित्राएपोकरतो होए तेंमित्रा सुश्रुतज्ञानने ११ १०. प्रपंचा हिरिकवर करे ५ पबंधं च नकुबइ मितिद्यमाणो लयई एकरे ६ सुयं स पामीनेन करे अहंकार ११ कलिपा पोतानी प० परनेमधिनघाले न० बजिमित्रनुपरे कोपनकरे • मियकारीयापा नय पावं अपराध परिस्केषि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नयमित्ते सुकप्पइ अप्पियस्सायावि ला० बोजे १२ क० वचननोकलह ५० माऍाघात तथा तेममरवर्जएाहार बु० तत्त्वनो बुधेय कलाण लासइ ॥ १२ ॥ कसह रुमवचए हि० लज्जावत पर इंडियादिकनो गोपबाहार सु० रूमोहोए विनीत ३० एवी कहिए १३ बरु बसे कु० गुरु अभिजायए हिरिमं परिसंखि सुविशिएति बुच्चई ॥ १३ ॥ बसे गुरुकु नास घामाने विषेनि सदाएं जो० गुलजोगसहित ध्यानादि तपसहित पि० सर्वजीवन मियकारी पिन मियकारी वचन बोलाहार वेनिचं आज्ञारहित जोगवं पियंकरे ११ पिचाई ॥ से एवो होए ते ज्ञानग्रहणाचारित्रने स० पामीने. जोग्य होए हवे बहुश्रुत उपमाएंकरी कहेने १४ नवहाएणवं जे० जेम संषने विषे दूध घालोयको दुबैप्रकारेपपा सोलते एबेचोषा १०० जहासंरवमप्पियं निहत्तं हनुधिविरायई उपमा लाजनमा | सिरकं सडुमरिहई ॥ १४ For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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