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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न [अ०] असातावेदनीकर्म नो०० वारंवार नुन बांधे अ०मनादिते यादिरहितबे इयंच त्र्यं. त्र्यंत रहित दी ० दीर्घ अ.२७ गदगंदीह ध० धर्मकथा कहवेकरी हे पूज्य जीव धम्मकहाणं लंतेजी ३३३|| असायावेयणिचंचगं कम्मनोलुखोलूयो नवचिएगाई ॥ पंथवे चा० च्यारगतिरूप न्यावेवे जेने विषे सं० जे संसारमरवीते खिन्शीप्रजन्मनुक्रमे मोक पाये २२ मऊं चानुरंत संसार कंतारं खिमामेववीय ॥ २२ ॥ | जीव किस्युं नृपराजे ध० धर्मकथा कहवे करी नि० कर्मदाय कर वा नीविधनुपराजे प० सिद्धांतना प० प्रलावनागु करी सिद्धांतना गुए। दीपाचवे बेकिंजायई । धम्मकहाएां निरंजाय ॥ पवय ंपलावेइ ॥ पवयांपनावां प० सिद्धांतनागुणदीपावबेकरी | प्रा० त्र्यागसेलवे ल० कस्याएाहोए कर्मफलनपूराजे २३ सु० सिद्धांतनी माराधना कर बेकरी लॅ. हे याएणं जीवेयागमि सिस्सलता कम्पनिबंध || २३ || सुयस्समराहायाएां लंते पूज्य जीव पराजे सु० सिधांना रांधनी करवे करी | जीवे किंजाय ॥ सुयस्स माराहएायाए | ए० एकाग्रमननी सं०थापना नेटकरी लं. हे पूज्य जीव किस्युं नृपराजे म० अज्ञानषपावे न० कसेसना लोगवएाहारनहि २४ । | एगग्गमांसंनिवेसायाएएां लंतेजीवे किंजाय अल एां खवेई नयसकिसिस्साई ॥ २४ ॥ ए० एकाग्रमन श्रुत सं० थापना करवे करी चिनुन्माद ३३३ ॥ एगग्गमणं संनिबेसणयाएएां चित्त For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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