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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । लाजननेएसरीर अ. अशास्वनो स. सरीरनेविषे र रतिनधी पामतो पप वृक्षपणे बांसवो अपना अशास्वना लपीबाप अ.१५ लायणं असासए सरीरंमि ॥ रश्नोवललामहं पग पुरावचश्यत्वे ॥ पणेबगंयो. फे पाएीनाफेपनोबुबुद्बुदा सं सरघासरीरनेविषेशरति नथिपामतो मा० मनुष्यपणे अन् असारनेविषे वा व्यापिने कोढादि अनि फेणबुव्यसनिले ॥ १४ ॥ १० माएकससे असारंमि वाहिरोगाराआलए घपी रो रोग तेज्वरादिक । जन्जरामरणेकरी घाघेस्युंडे एवोसरीरनेविषे खचषएमात्रपणरनिनमानुस १५ मा जन्मनुप जरजराजप तेनाघर... जरामरायबंमि ॥ वपिनरमामहं ॥१५॥ जम्मरकं जरा रोज रोगमरपा महेमाना फुपुश्नो हेतु निश्वे संसार जर जिहां की किसंसाएजीव , १६ रक ॥ रोगायमरणाणिय ॥ अहो पुरको संसारो ॥ जब कीसंति जंतुरे ॥१६॥ खेर नुघाफी श्रागासि भूमिढांकील्लूमिघरादिक पुरू पुत्रलार्यापखी बंध च नांगीने इ.एन्दारिकसरीर गंजाबो अवश्य || खेत्तं वचु हिंरपंच सुवर्णविक पुत्तदारंचबंधवा ॥ चश्त्ताणं श्मंदेहं ॥ गंतवमवस. मे में जन्जहां कि किपागवृक्षना फखनु प० परिणाम न नीललो जिम परिणामे ए एम लोगव्यालोग | १८५ स्समे ॥१७ ॥ जहा किंपागफसाएं परिणामोनसंदरो तिम२ एवं मुत्ताएं | For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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