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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नसन्सधुवयनीनुपमाएं वि० प्रतिबद्धपणें विहारिणो ॥ १४३ सफूलूय मकमाई० पोतानी इबाएक प्रवरता www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० हरष पामतायका गढ़ संजमने विषेमवृत्तिते पुरुष । दिया० पंषीनीपरें पंषी के बाबेका १४ ग्रामोयमाणा गनुंति विवेकीबे नरके हनी परें दिया कामकमाइव ५० एशब्दादिक लोगय वली ब० अनेक प्रकारें ग्रही राष्या के तेपए फंदन व रसलाव इमेय बडाफंदंति जेहनातंत्र्यथर कांमलीगमन मारातथातु ॥ ४४ ॥ हारतिमापपाइए ७४ | माराहायिप्रते द्यायतया आर्याव्यवे आपणा च बसी त्र्यासक्त बोकामलोगनेविषे ल० बांमीने होएसी जब जेनएपुरोहिता ममहद्यमागया वयंचसत्ताकामेरू लविस्सामो जहाइमो ॥ ४५ ॥ दिकसाधुययातेमा ४५ | सा० प्रामिषसहित पंषीने देवीने अनेरे पंखीएं बपीमानुपजावतां त्राने तथा नि。 च्यामिषरहितपंषीनेपीमा आएरूप प्रापरिग्रहरूप सामी सकुसलं दिस्स ग्रामिसंस श्रामिषने ससर्वने ढांकीने वि० विचरतो निरु परिग्रहादिकं यामिषरहितयका ४६ गियामिषसहित पंषीनी नृपमा बमुश्झित्ता बझमाएोनिरामिसं जावनायका हेनाय सुषीदेषीने विहारस्सामो निरामिसा ॥ ४६ ॥ गिद्धवमेननञ्चाएं नेमुः समुचयन. का॰ कामलोगने सं॰ संसारवधारवानो कारएा जाती नु० सर्वगरुमपेषीनी समीपे ' सं० बीहतोय को त हजुहा १४३ जाएगीांन्त्र्यसंकारें कामेसंसारबढ नरगोसवन्नपासे ॥ जैम संकमाणो नचरे For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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