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| चकफागपाचैत्रबैसाषएचौथात्रिकनेविषे । रारात्रीनाच्यारत्नागने प८पहिलीपोरसीएंसनायकरे बिबीजीपोरसीएघ्यानध्याई अ२६ चनुकवि ॥१७ ॥ पोरसीमापायी.। विषे रात्रि पदमपोरसीसशाय॥ बियंशाएशियाय
तन्त्रीजीपोरसीइनेंशनेबुटीसूके श्राववादीए अवधारो च चोपा पोरसीएचस्तीपणसम्मायकरे रात्रियोरसीजएाएतेकहेचे जे जेम | ई । तश्याए निद्दमुरकंतु ॥ चचिलुछो विसशायं ॥१८॥ जेनेई| नघत्रपांचाळेजेकालनेविषेराषिरानीननक्षत्रनेनेनरूत्रना आकासचोथात्लॉगनेविषेसं आचेपांमेबनेपोरसीजाणवीस सप्तायपकीपात्तसका जयारतिं । नरकत्तंमिनहचनुशाए ॥ संपत्तेविरमिद्या ॥ सशयंपने सकासंमि | नेविषे १५ तंतिमहिन बस्ती न नषत्र गआकासनेविषेचा चोथै लागे सेन्से सेषभावेपके पाबलीपोरसीजा ० विरतिपणे ॥ १८॥ तंमेवय नस्कत्ते गयएर चनलागसाब सेसंमि। बीते वेरत्तियं| _काकाल कहियेतेनेपपरिखेहीने मु० साफ सहायकरे २५ हवेवली दिवसर्नुकरतव्य पुत्र दिवसना पेहेलापोरसीनुदिव | पिकासंपमिलेहिन्ता मुगीकुया ॥२०॥ विस्तारीने कहे जे पुबिलमिचनलागे ॥समापहे| सापोरसीचच्चोथात्नागनेविषेपेली यमीनेविषेपनिखेहीनेलच्चस्त्रादिक गुरूनेबांदीने सम्झाय करे उषधीमूकावेसशाय २१ २८५ पहिलेहिन्तागलंकगं ॥ नुपगरणने गुरुवदितुसशायं ॥ कुचारकविमुस्कयां ॥२१॥ ||
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