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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पोरसी । विषे लायांप उ. पो. पहिला पुह्रनो च० चोयालागने विधेएतले बं० बांदीने नवतिवारी गुरुनें यानिबर्तावीनें का० सझायनाकास लान्पात्रादिक प्र. २६ २०६ पोरसीए चनलाएं वंदित्ताएं तनुं गुरु । अपनिकमत्ता कालस्स ॥ लाजनने एषघवचन जातिवाचक जाएावोपरि ५० पढ़िकं मोहपतिनु परि जेहाने पपले परहे गुलाने मिलेहए ॥ २२ ॥ जेहीने २२ मुहपत्तियंपकिलेहिता । परिसेहिधगुगं । गुजंगलश्यंगुलि ह्योछेत्र्यंगुलिनं जेणेंसाधुएं | वन्यस्त्रनेपनि लेहूं २३ हवेवस्त्र परिवानिविध कहेने बच्चे चीस न० बस्त्रचंचौ राधे धिक व्याकराय मन्चनावसो २ न गुलगुलिय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे ने साधुगोडापरिहापी बच्चा परिने हए ॥ २३ ॥ पाकहिये जे २.० नरिंन्तुरियं ॥ पुताव | सामतोथईने पनि लेहए। करे पूर्व घुरनायी प० परिहारे ४ ए ४ पईने प्रथम परि सेहला येईने व बस्त्रने एक एमतो. ते डटीजायापती यमेव ॥ बेसावे हेपापी परिखेहेतोविश्यं ॥ बीजी परिखेहा जीव चढो जाएोतो प• बस्ने थोडूंषंधेरे नञ्चाहवेत्रीजी परिखेहणा पु० चसी पपरेतांन नतस्यां तो प• वस्त्रने पूजेजे ६ एत्रएाचीके ६ पनि लेहगा जाएावी अन्बस्त्रने तथा सरीरनेनीच पप्फोद्यातईयंच ॥ पुष्णोपमद्येद्या ॥ २४ ॥ नमस्त यी परिवहणा प्रसन्न कलेजे माञ्चावियं नहीं अण्वस्त्र ने मामले नहिं करलीन करे श्रन्थो एवस्त्र एापारिले नराधे कुंडूंनी डूंत्रीघर | बढपूर्वमायानुंठमहं कही नेने त्र्यबकहि २८६ नीए चमकारे नहीपूर्ण बप्पुरिमानव खोमा ॥ वेलेमसस्त चलिय || एफबंधि प्रमोससिंचैव ॥ " For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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