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|नि अर्थरहिननिफमनि० तेचरित्रादिक आदरीने त नेइन्यय जे. जे नुत्तमर्थ पिकविराये इहलो से २२१/ पश्चात्तापकरेगृहस्लमांपणजईनशके चारित्रनीरुचि निवेषधारीनी . सापेते
कपएा ने निरचिया निग्घरुईन तस्स जेनत्तमवे. विवकासमे ॥ इमेवि से नक नयीपरखोकपण बेखोकमाहे सेक् नेवेषधारीत्रष्टतायेंकरीले स्वीजे खेद पांमे एएएीपरें अन्यथाचंदे पापपए तिहां लोकने विषे
पोतानेबंदें प्रचर्नाववे करीने नचि परेविखोए. उहन वि सेललई, तबसोगे ॥ ४॥ एमेवहाबंद कुरू कुशीलीयानुं “म मार्गचिराधीने जिन जिनेनो कु. जेमपंरपएी आमिषसहिन पुरस पामे लेम निकामिर रूप
जिननुत्तमनो लोगनास्पादनविपेरसग्रह लोगना थकफोकट | कुसीलरूये॥ मग्गंविरहित्तु जिएत्तमाएं ॥ कुररी विवालोगरसाएफ़गिड़ा ॥ निर. सो शोचपश्यात्तापकरे पांमे ५० सो सांत्मलीने हवे अनायी मे बुद्धियंत एयारेणिक सु० त्यसो लारन्यो ३० अ० शिरयामए महानिग्रंथने राजापत्ये कहेले
में लांस्वीजे की || २२१ सोयापरियावमेई ॥५॥ सोच्चा ए मेहावी सुलासियंमं अणुसासणं
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