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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न. निश्वे श्रा० श्राज्ञारुचिवंतना जांएवो २० हवे सूत्ररुचि जो० जेकार सूत्रसिद्धांतने लातोको सू० सूत्रने लावेकरी नृपा म. २० ३१ खक आशारुईनामं ॥ २० ॥ जोसुत्तमहितो ॥ सुए।नु॑गाह सम्मन्तं ॥ मे पूर्ण समकित ०माचारगादि लावे अथवा बा• गयी बाहिरते सौ० ते पुरुष सूत्ररुचीनो घणी ए बेकरी समकित पाये ना० जांए बने २१ अंगेएाबाहिरेव ॥ उत्तराध्ययनादिक सोत्तरुत्तिनाय ॥ २१ ॥ हवे धर्मास्तिकायादिकबडव्य विषे निश्चय मने व्यवहार एम विचारीएते कहेबे धर्मास्तिकाय १ अधर्मास्तिकाय २ सोकाकाश ३ एत्राने विषे असंख्यात प्रदेसात्मीक अरूपी चेतनपएफ सोका का सने विषे अनंत प्रदेश एनिश्वयप ने धर्मास्तिकायने विषे गमनगुए १ श्रधर्मास्ति कायने विषे थिरगुएा २ प्रकासनो अवकासगुएा ३ एवो प्रवर्तन ते व्यवहारनय ३ कालनेविषे एक पर्यव रूप चैतन्य एनिश्वयप ने ऋतुयन संवरादिकने विषे समयादिक व्यावलिका प्रमुष नयते व्यवहारपरकं ७ जीवने विषे असंख्यात प्रदेशात्मामरूपी शुलाशुलनुपयोग रूप चैतन्यपरकं ते निश्चय अने एकेंद्रियादि पंचेंडी तथा सरीरी जुगाइएादिकने विषे मवरतवूं ते व्यवहारनय सिनेविषे व्यवहारनथी - कर्ममाटे ५ गंध २ रस ५ फरस संगए ५ इत्यादिकनुं मत-क ग्रहपारूप प्रवर्तन ते व्यवहारनयी कर्ममाटे ५ गंव २ रस ५ फरस संगए ५ इत्यादिकनुं मततग्रहए। रूप प्रवर्तन ते व्यवहारनय ए ६ दव्यनु निश्वयव्यवहारपएफ एम चिंतवे सूत्रनानयप्रमाणें ३११ करे जाएवं एधर्मास्तिकायादि बडव्यना उव्यत्नावविशेषादिक शेष २३ बोलबीजे अंतरपत्रयी जाएवा एतसे मुक्तिनुंकारए। ज्ञाननी For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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