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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न लरतचकिंवत् । तेव्यवहारसकामनिर्जरा निश्चयव्यवहार । ए बि संघातेजहोए । तेहयी विपरीतेव्यवहार अकामानिर्जरा । अ.२८ जीवनामदेसनेविषे पुदगसनोबंध तेनेबंध कहिए । समुच्चयजीवाश्री १ शुद्द अश६ अध्यवसाएंकरी जेमुत्माशुल बंध तेनिश्चय |बंध तिहां समकितवंतवतनापपीनो श्रुल अध्यवसायने अफलादिककर्मनी निर्जराएं शेषपातला कर्मरया तेणेशलबंधापर समकित्तादिकन करतन्यते बंधनुहेतुनहि अने सुत्माभुल अध्यवसानुं जेमवर्तन नेणेंकरी बंपर्ने व्यवहारपएं जापिएं पक्षण - जीवना सकसप्रदेशथी सकसकर्मपुदगसर्नु मूकाववू ने मोक्ष ते सिद्धपएफ एनिम्विय मोझते सिद्धानिसिघने विषेप्रवर्तनरूप व्यवहार नयी अकम्मसव्यवहारो न विद्यए एक पदारयनु निश्रय व्यवहारपएं कहां बे हवे व्य३ लाव तथा निक्षेपो । तपा न्य १ पेत्र २ कास३ लाव ५ इत्यादि २३ बोसवीजी अंतर पत्रयी जाणचा पोनपोनाने बेकारो चिनववा ॥ १०॥ ॥ ए० एपांचचारित्र च कर्मनासमूहनेरासवाचारित्र आतीर्थकरेकह्यु हवे नप कहेढे ३३ तन्नपवसीपु बेकारनोकह्यो बान एयंचयरित्तकर । नेहोए ए— चारिनंहोइाहियं ॥ ३३॥ तवाय विहोवुत्तो ॥ बा| बाह्यनप अन् अप्सितरतेम वा बाह्य व उप्रकारे ए०एमहिन उपकारें अत्यंतरनप ना. ज्ञानें करीजांणे लॉ० सर्वप रं सम तप कलं. हवेधना ५ गुणा कहेडे ३५ दारयना जाएगा किनेकरीबसी ३११ हिर रोतहा ॥बाहिरोबबिहोवुत्तो ॥एमझिंतरोतयो ॥३४॥नाएोणजापाईलावे दंसो For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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