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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नजायसर्वदापासेमरहेने स्त्रीये पण पुरवयीन मूकान्यो. एबुं महारुं अनायपकं ३० न नेवारपनीऊएम कहे तो फुले | अ-२० २१५ || विनफिट्टई ॥ नयफुरका विमोयंति ॥ एसा मत अपाहया ॥३०॥ ननुहं श्रेयमाहंसु ॥ एकसुंठवजज निये वारंवार सहेनांदोहिलीएपीनेवेष्वेदना लोनवीजे संसारनो अंतनयीएवा संसारमाहे ३१ साने एकचारजो स्वमाऊपुणोपुपी ॥ वेयगा अएफनविनंजे ॥ संसारंमि अतए ॥३१॥ संईच-जई. मूकाचो वेदना । वि विस्तीर्ण आरपनी वेदनायीतोत्व समानदंइंडियनो दमनहारनिक भारत्न पन्पतिवर्जुआदान्यपागारपएक मुच्चेद्या ॥ वेयगा विनुसाई ॥ खंतो दंतो निरारंलो रहितथा पञ्चईएएगारियं | "३२ एपो वली एम चिनवीने पऊ सूतो हे न नरापिपराजा पर जेटले अतिक्रमीगइात्री नेटसे वे वेदना ॥ ३२॥ एवं च चिंतइत्ताएं ॥ पसत्तोमि नराहिवा ॥ परियतंतीइराए ॥ वेय. महारी कयगई ३३ नपारपनी का रोगरहितपयो थके प्रत्मातें आपूबीने बंबंधरमातापिता ऊक्षमावतम ||एगामेखयंगया ॥३३॥ तन कले पलायमि ॥ आपुबित्ताएं बंधवे ॥ दिसत खंतो दंता | नदियआरंलरहिनन्ले पन् परिवर्जुअपगारपणं. .३५ न नेवारपीऊं नाथथयो आपणातया परनाच्या मातोऊपए || २१५ निरारंलो ॥ पीईअपगारियं ॥ ३४ ॥ तनहं नाहोजान ॥ अप्पणोय परस्संघ ॥|| For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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