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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न धर्मनेविपेथिरताकरेवन्सावर्मिकनुपरेवाबसकारिहितनोकारण। एप्पन्वीतरागनावचन शुद्धपरूपवेकरी प्रवचननोआचारलूषएाजाएवा अ.२० ३१५|| अ. श्हां सामाचारित्रएनसे बीजू मुक्तीनुं कारण १८ गाथाएकरी समकितनो अधिकार कयो ३१ हवेत्रीजोअधिकार ५ चारित्रनो कहेचे. पर प्रथम जापावू सामायक चारित्रसमीपे गन्यापधुंआत्मा दृढकरचोजेजात्रएमारग आराधबोप्रथमतीर्थकरने ल होए बीजु परिहारविसामाश्यपढ़मंचे सासन अने देखाए बेने वेदोपस्गपनी चारित्रहीएएजेदनुस्खापन चारित्र नवद्यावएलवेवी शुद्धनामा चात्रित्रत्री ए कोएक तपविसेष ले जघन्यतो चरसपी आचे निवारपरीसत्कष्टपूर्वकोकि आनषापरजतरहेजेजघनए यं परिहारविसद्वियं ॥ पूर्वनी त्रीजीवस्त नएयाहोए न० ए पूर्व पुरातेपण प्रथमचर्मतीर्थकरने सासनेहोए हा चो, चारित्राष्प संपराय दसमे गुणगणेजहोए सप्पपातसो तेसंपरायसंजसनसोमनाजदयमाटे सषमसंपराय ३२ अ०१६क |सुहमतहसंपरायंच ॥३२॥ अकसायमहरकायं ॥ पायरहिन २८ मोहनीनी प्रकृतितथानुदयलायरहित चारित्रने अव्यपाष्यातचारित्र ५yकहिए जे०११मेतया चारमे गुणगएँ बद्मस्ने होए नि० वा अथवा १३मे १५मे गुरागरो केचपीने बनमनस्सजिएस्सवा॥ होए ॥ हवेजीवादिक व पदारपने विषे निश्यय १ व्यवहारपएफ कहे । जीचनेविषेनिश्श्यते | असंष्यातप्रदेशात्मकडव्यनुपयोगरूप चैतन्यपएकं अनेतेचैतन्यवंन एकेंद्रियादिक पंचेंद्रियपर्यंत जीवदेहधारी पोतापोता सरीरोगाहणादिका ३१५ नेप्रवर्ततेजीवने विषे व्यवहारनय एकसिद्धने विषे व्यवहार नयी अकर्मकमाटे १ अजीवधर्मास्तिकाय । अधर्मास्तिकाय र सोकासास्तिन For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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