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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कुत्त ३० ना० तपेनहि सत्कारादिक दीपे दीपेवते. द्या ॥ नातप्पे पोलकर्तव्येकरी - फुं नरमनुष्यज्ञानने सन्मुषको जा एकमे पाहुंनालि जाणामि ॥ | क० कर्मज्ञान फस जे जेहनी एहवा की धानिएका रा याबाधकास पहिला ते टासीनुद्यमकरो प्रज्ञावंत ३९५ पन्नवं www.kobatirth.org हवे प्रज्ञा परिसह कहेजे हवे तथा जे साधु एम जाएंगे से० नौमें पु०पूर्वलवनेविषे कर्तव्य विनयादिना ग्यान पामीएए ०२ हो फन्फज बे जेनो एवा कर्तव्य जेन्जेकम्मानाएं फलकमा जे ॥ ३९५ ॥ सेनांए पुं फुप्रमादिक पूर्वाधको के० कोइक पवने पूबाहार के को इकथानकने अथवाहवे एतनाथकी चिषेएम जाएी प्रज्ञावंतगर्वन करे बसी एम जाती गर्व नकरे ने कंडे ४० पबेनुदयने कर्में नदयावे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुच्चोकेाड़ कनडुइ ॥ ६५ ॥ asar करमानांणफलाकमा एक एहवा आत्माने साता गर्वमकरी जाने कर्मनीनुपराजनकीघा कर्मफल निοनिर्धक थै ताइरानृपराज्याकर्म ज्ञान एम पन्ना परिसह ६१ मोहने ॥ ४१ ॥ निरवग मोलमोनोहेतु पा वो धर्म वास्तु स्वरूप पदार्थ जेवीचे स्यापा पावर्गकर्म नरकादिकनो कारएाउल ३० एवमस्सासि प्रप्पाणं नच्चाकम्प विवागयं जेन्ली हो सान्दानू मगर नजापो जेधर्मक प्र लाये एडवाचारिन मे० मिथुन धकी निययों एनसे विषयसुख विनिर्धक चली फोकट बांया सुषमादरीने निविश्तु मेकुपान सुसंक्को को सरकंनालिजाएगामि तव धम्मं कल्यांण पावगं ४२ २ For Private and Personal Use Only स
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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