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कुत्त
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ना० तपेनहि सत्कारादिक दीपे दीपेवते.
द्या ॥ नातप्पे पोलकर्तव्येकरी - फुं नरमनुष्यज्ञानने सन्मुषको जा एकमे
पाहुंनालि जाणामि ॥ | क० कर्मज्ञान फस जे जेहनी एहवा की धानिएका रा याबाधकास पहिला ते टासीनुद्यमकरो
प्रज्ञावंत ३९५
पन्नवं
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हवे प्रज्ञा परिसह कहेजे हवे तथा जे साधु एम जाएंगे से० नौमें पु०पूर्वलवनेविषे
कर्तव्य विनयादिना ग्यान पामीएए ०२ हो फन्फज बे जेनो एवा कर्तव्य जेन्जेकम्मानाएं फलकमा जे
॥ ३९५ ॥ सेनांए पुं फुप्रमादिक पूर्वाधको के० कोइक पवने पूबाहार के को इकथानकने
अथवाहवे एतनाथकी
चिषेएम जाएी प्रज्ञावंतगर्वन करे बसी एम जाती गर्व नकरे ने कंडे ४० पबेनुदयने कर्में नदयावे
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पुच्चोकेाड़ कनडुइ ॥ ६५ ॥
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करमानांणफलाकमा
एक एहवा आत्माने साता गर्वमकरी जाने कर्मनीनुपराजनकीघा कर्मफल निοनिर्धक थै ताइरानृपराज्याकर्म ज्ञान एम पन्ना परिसह ६१ मोहने ॥ ४१ ॥ निरवग मोलमोनोहेतु पा वो धर्म वास्तु स्वरूप पदार्थ जेवीचे स्यापा पावर्गकर्म नरकादिकनो कारएाउल ३०
एवमस्सासि
प्रप्पाणं नच्चाकम्प विवागयं जेन्ली हो सान्दानू मगर नजापो जेधर्मक
प्र लाये एडवाचारिन मे० मिथुन धकी निययों एनसे विषयसुख विनिर्धक चली फोकट बांया सुषमादरीने
निविश्तु मेकुपान सुसंक्को को सरकंनालिजाएगामि तव धम्मं कल्यांण पावगं ४२
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