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मुडपाल
अरु ममतारहिल परिग्रहरहिन २१ वि स्त्रियादि खन्नपात्र आपणा आत्मानेपुर्गती नियतीनेअग्रहसनपाश्रयप्तीपेनहिं | अ-२१
रहित परतोरापेनयानकायनीरझानो तेवा नपाश्रय समुइपास सेवे चितवीने अममेअकिंचणे ॥२१॥ विविन्न सयपाइंलरायता निरूबलेवाइ असंयमाई ॥ आपनोसा इकबीजर व जेदोपसहित नुपाश्रय सेव्या म० मोटा का कायाएं प परिसहे २२ सन्लेस धुनेनक हिनयो. घशने घपीएतेषानुपायसेप्यालेसमुऽपास करीसहे | ये. इसिहिं वन्नाइ महायसेहिं । यती काएगफासेध परिसहाई ॥२२॥ सन्ना
मुनी न्नान् ज्ञान अने क्रिया अन् महाभधानान घ० दसविष यतीनो अप्रधान ना केवलज्ञानना पर न उद्योन | | सहितं कषी आचरीने धर्मसमूह
हार जसवंत करे पन्नागोवगएमहेसी ॥ अफत्तरचरिनु धम्मसंचयं ॥ अफत्तरेनाए घरेजसंसि । नुलासई सूरु सूर्य अ आकासने विषेनुद्योत करतेम उचित प्रकारे शुल अशा प्रक निव्गनिरहितसेसेसिअवस्वाए कायादिक
ज्ञानेकरी नद्योत करेले तिषपापीने पुर पुन्यपाप नाव्यापाररहितअजोगीकेवलीस. सर्वकर्म || २३२ सूरिएवं अंततिरके ॥२३॥ विहंरचवेनपाय पुन्नपावं । निरंगो सच्चन विप्पमुस्के
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