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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ मुडपाल अरु ममतारहिल परिग्रहरहिन २१ वि स्त्रियादि खन्नपात्र आपणा आत्मानेपुर्गती नियतीनेअग्रहसनपाश्रयप्तीपेनहिं | अ-२१ रहित परतोरापेनयानकायनीरझानो तेवा नपाश्रय समुइपास सेवे चितवीने अममेअकिंचणे ॥२१॥ विविन्न सयपाइंलरायता निरूबलेवाइ असंयमाई ॥ आपनोसा इकबीजर व जेदोपसहित नुपाश्रय सेव्या म० मोटा का कायाएं प परिसहे २२ सन्लेस धुनेनक हिनयो. घशने घपीएतेषानुपायसेप्यालेसमुऽपास करीसहे | ये. इसिहिं वन्नाइ महायसेहिं । यती काएगफासेध परिसहाई ॥२२॥ सन्ना मुनी न्नान् ज्ञान अने क्रिया अन् महाभधानान घ० दसविष यतीनो अप्रधान ना केवलज्ञानना पर न उद्योन | | सहितं कषी आचरीने धर्मसमूह हार जसवंत करे पन्नागोवगएमहेसी ॥ अफत्तरचरिनु धम्मसंचयं ॥ अफत्तरेनाए घरेजसंसि । नुलासई सूरु सूर्य अ आकासने विषेनुद्योत करतेम उचित प्रकारे शुल अशा प्रक निव्गनिरहितसेसेसिअवस्वाए कायादिक ज्ञानेकरी नद्योत करेले तिषपापीने पुर पुन्यपाप नाव्यापाररहितअजोगीकेवलीस. सर्वकर्म || २३२ सूरिएवं अंततिरके ॥२३॥ विहंरचवेनपाय पुन्नपावं । निरंगो सच्चन विप्पमुस्के For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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