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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म लोठ मोग्यलोग हे संयति म भित्रन्यानेकरी पद सहिन एवो मा० मनुष्यनोत्नवत्ने खत निमें पामयोऽर्सलडे ११ अ अ-२० लोगलुजाहिं संजया ॥ मित्तनाइपरिमो॥ भाएफस्स खकस्सहं ॥११॥ अप्पपपापे अनायवे तुंतो सेव हे श्रेणिक मगपदेशनों गरजे मापापे अनविडतो. ककहेनो नाय लत्याइस. पावित्र्यपाहोसि ॥ सेणियामगहाहिवा अप्पयो अगाहोसंतो ॥ कुस्सनाहोलविस्तासि १२ एएमयतीले कहेयके सोच्ने न राजा सुनससन्नमचित्तेंकरी अनिविस्पय च एघुवचन पूर्वे अासानल्यु ते सालल्यु ॥१२॥ एवंवुत्तो नरिंदोसो ॥ ससमतो । तविम्हने । वयए अस्सयपुत्वं ॥ सा कोई साये नकयुं तेहचु वचन कयुंचकुं विस्मयपाम्योराजा अति अब तेत्रीशसहस्रअ भन्य, तेत्रीशा शक्रोमी म मनुष्यमा पुग साउणाविम्हयं निन ॥ १३ ॥ अघटतुं केम बोसे अस्सा हडी सहरसहाथीनेत्री मफस्सा मेहारे पर रनयाअंतेनरमहारेडै लुं लोगवुलु मा मनुष्यसंबंधि लोग आआज्ञामहारी सूसीरीने सेधक आराये जे १४ एक एपीप्रधान सं अंतेनुरंचमे ॥ लुंजामि माएफसेलोए ॥ आपाश्स्सरियंचमे ॥ १५ ॥ एरिसे संपय संपदा स सर्व का मनोवांठित घस्तु सहित महारोमात्मा क केम अनाय थान इं. मा० रखे हे लगवंत मुसशबोसलाऊन २११ गंमि ॥ सबकामसमिप्पिए। तेलगी कहं अपाहोलपई ॥ माऊलंते मुसंवए॥१५il For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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