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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie २० रक्त वे जेमनुष्यने ए• एप्रकारेकिहांयीसु सुषहोएकः कहिएंपण यो एपणात निदांमनोज्ञशब्दन लोगे आववानेविषेपणाक्ति अ-३२ रत्तसनरसएवं ॥ कतोसुहंहोघकयाकिंचि । तबादलोगेविकिसेसपुरकं । किसान पामे नि निपजावे • अमनोज्ञशब्दलोगववानेकाजे पुरुषांमे एक एपिपरेंस पासूया शब्दनेविषे पत्तोयको देषत्माद जु- पामे निवत्तजस्सकएगपुस्कं ॥४५॥ ४५ एमेव सई मिग पनेसं ॥. . नई पुषनासमूहनी श्रेपीएं पदेपेकरी पृष्ट चित्र चित्तनो धणी चि बांधकर्मतेजीव पु वली होए १० उषकारियाविपाके श्हसोक परसोको स्कोहपरंपर्नु ॥ पञ्चचित्तोयचिपाश्कम्मं । जंसेपुपोहोहंविवागे ॥४६॥ नेविषे ५६ स- मनोज्ञशब्दनै बि० रागरहित एतेपनोज्ञ वि० सोकरहित एक एपू कहीले ३० उषनासमूहनी पीए न० नतिपाएनयमाएका सद्देविरत्तोमएन विसोगो। एएगापुरकोहपरंपरे।। नसिप्पई लव पए से बनो जन्मपाएगीएंकरी पुः कमलनुपपानसिपाए नहि नेमविरक्त मनुष्यनक्षिपाए ५७ घाउ नासकाने गंधकस्तूरीमा मशेविसंतो ॥ जसेएवापुस्करणिपसासं॥४७॥ हवे प्राोंडीना १३ काव्य के मुपग ग्रहवाजोग्यरेएमकहेनार्यकरनन्नेकुरगंध रागना हेतुडेजेमे मनोज्ञगंधनेविपीन नेगंधयेषहेतुडेअजेअमनोजगंयो ते ३८३ वयंति । तंरागहेनुत्तुमएसमाश ॥ आ० एमकहेतीरथंकर तंदोसहेनअमएकामा For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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