________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नुत्त|| चंचमाष बुजूदीजूदीमा ते वारपनी कीमापनंगीया ।। त० नेवारपनी पि० कीमी होय ॥ ७॥ ए०एम आठ परित्नमाकरे || अ-३ ३३|| होय बापनीजातिथी ।
कुंथु
जो योनीनेवि चंमाल बुक्कसोल कीमपयंगोय ॥ तळेकुंयु पिपीलिया ॥४॥ एवं मावजोगीत पान्जीव क कर्मने कि मसेक नक निवर्तेनहि संसंसारने स सर्वअर्थनेविषेजेमरख कात्रिय क कर्मनैबुदयें| रीने विषे
राजा तृप्तिनपा,५ करि पाणिगो कम्मकिञ्चिसा ॥ ननिधिकंति संसारे ॥ सबवेसुव खत्तिया ॥५॥ कम्मसंगेहि सं मूर्य उ.कुरपी बघणी वेदना अमनुष्यनीयोनिविना नरकादि वि पिशेर्षे हणायचे पाल जीव ५ होय . थाय पामे
योनीनेविषे पीमापामे संमूढा । फुस्किया बयणा ॥ अमाएफसासजोएगीसु ॥ विणिहम्मति पाणिगो ॥६॥ का अंशुलकर्मनेतु अर्थदीपाववाने आ पहनाअपगभनटाखवेकरिक जीवएमननिश्चे
अर्थे अनेकत्लवपरित्यमणकरेतेअनुक्रमें सो विशुष्कर्मने कम्माएं तु पहागाए ॥ आएफपुच्ची कयाईने । जीवा सोही मफपत्ता ॥ आययंति
पाअंगीकारकरे
For Private and Personal Use Only