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संसार मा० मनुष्यपतं सु० सिद्धांत ०३ नुसालसवं शुद्धसद्दह्णा
नुक्त. ३० इति परिसहअध्ययां संपूर्ण ॥ २ ॥ च चार पन्नुत्कृष्टा
पु० पामतादोहिजो इ० मानं जीवने
३२
गमुक्ति पामवानां
इतिपरिसहायगं ॥ २ ॥ चत्तारि परमंगाणि
दुस्सहाणीह जंतु
॥ माएस्सत्तइस
संकारें
जानजातिविषे
सं० संयमने विषेयच्वी बी बलपराक्रमनुं सन्याम्या ए० सं० संसारनेविषे नाव नानामकारना गो० गोत्रने विषे कन्कर्मी फोरवनुं । 119 11 डा संजमंमि यावीरियं ॥ १ ॥ समावन्नाा संसारे || नाएगागोत्तासजाइस ॥ कुम्मा ना० नाना प्रकारना क० करीने पु० जूदे जूदे लवेंकरि ल० लखोजी सर्वे ॥ २ ॥ एक एकदा प्रस्ताबें दे० देव संपूर्ण लोक नृपजवेकरि सोकने विषे
न नरकने विषेप
लयापया ॥ २ ॥ एगयादेवखोंएस ॥ या जहवां कर्म करे गजीब जाय एवं एकदा खन् क्षत्रिय तेचे कर्मों क
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ए
नरए रूवि होय तं ते
नाविहा कट्ट ॥ पुढो विस्सं एक एकदा एक एकदा मस्तीने मार कुमार संबंध कायने विषे
स्तावे
प्रस्तावे
वारी ३२
एगया । एगया प्रास्करं कायं हाकम्मे हि गनई ॥ ३ ॥ एगया वत्तिनुं होई ॥ तन
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