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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसार मा० मनुष्यपतं सु० सिद्धांत ०३ नुसालसवं शुद्धसद्दह्णा नुक्त. ३० इति परिसहअध्ययां संपूर्ण ॥ २ ॥ च चार पन्नुत्कृष्टा पु० पामतादोहिजो इ० मानं जीवने ३२ गमुक्ति पामवानां इतिपरिसहायगं ॥ २ ॥ चत्तारि परमंगाणि दुस्सहाणीह जंतु ॥ माएस्सत्तइस संकारें जानजातिविषे सं० संयमने विषेयच्वी बी बलपराक्रमनुं सन्याम्या ए० सं० संसारनेविषे नाव नानामकारना गो० गोत्रने विषे कन्कर्मी फोरवनुं । 119 11 डा संजमंमि यावीरियं ॥ १ ॥ समावन्नाा संसारे || नाएगागोत्तासजाइस ॥ कुम्मा ना० नाना प्रकारना क० करीने पु० जूदे जूदे लवेंकरि ल० लखोजी सर्वे ॥ २ ॥ एक एकदा प्रस्ताबें दे० देव संपूर्ण लोक नृपजवेकरि सोकने विषे न नरकने विषेप लयापया ॥ २ ॥ एगयादेवखोंएस ॥ या जहवां कर्म करे गजीब जाय एवं एकदा खन् क्षत्रिय तेचे कर्मों क For Private and Personal Use Only ए नरए रूवि होय तं ते नाविहा कट्ट ॥ पुढो विस्सं एक एकदा एक एकदा मस्तीने मार कुमार संबंध कायने विषे स्तावे प्रस्तावे वारी ३२ एगया । एगया प्रास्करं कायं हाकम्मे हि गनई ॥ ३ ॥ एगया वत्तिनुं होई ॥ तन "
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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