SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दाबानस २३३ ज० जेमदवनो अग्निते प० घणाएथएाकाष्ठले जेनेविघे एयावन्दननदाबानस केवाउस वायरेकरीमुदिननोऽनुन ए० एग प्रकारे इडीना अ३२ जहादवग्गी पनुरिंधरोवणे । समारून नोवसमंनुवेई विकाररूपअग्नि अपराधणावरसनालो न ब्रह्मचारी ने न हीनहाए इतने अय क कस्यचिन को ब्रह्मचारीनं विस्त्रीप गामलोश्यो। जमराहारने नबत्नयारिस्सहियायकस्सई ॥११॥ पण ११. विवित्त शुपमंगरहितासि यानक पाटिपाटप्सादिकना जं. सेवपाहारना 5 योमा आहारनाकरणहारने दः इंडीना दमएडारने न रागरूप सिद्यासजनियाए। - नेमासगाएंदमिंदियाणं ॥ नर्गिस्सा न. ध परामवनकर चि० पूर्वोक्तसाधूनाचि| प० दूरकीघोटाल्यो ने राग जेम नं नषधेकरी ते रोगवलतोदेहने जन्मबिलामीना तूरिसेशचित्तं ॥ तने पराश्नवाहिरिवोसहेहिं ॥१२॥ परात्नपेनहि १२ जहाबिराला वत्स्वाना थानक, मूसमीपेदरने व ने रहबानी जाएगान०प० लसी| ए. एइष्टांतें २० स्त्रीनानि रहिवाना घरने मांहे न० वसहस्समूले ॥ नमूंसगावसहीपसबा । नहीं एमेषशव निलयस्समझे। न - ब्रह्मचारी व नहियुक्तोलसो नि निवासरहि,१३ सः साधुतपसीहोए इठस्त्रीनासातवानाचिनासिक पोताना चिलने विनिवेसइत्ताः || ३१३ बन्नयारिस्सरवमो निवासे ॥ १३॥ नरूवतावन्नविलासहासंनजंपियंइंगियएहियंवा॥श्बीए माला For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy