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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब्जयावंनजती सीए अधवामूके बेनुपग्रहिकनद विन्यादाननिषेवणावंतसाफ अ-२४ न प० परिहा करे फ पूजे २६० परिसेहिता । पमजिद्यजयंज || दाणनिस्त्रिविद्यावा ॥ दूहने पीने विसमिएसिया ॥ १४ सदाहवे ५ मी पारिवा नवमीनीति पावसघु नीतिबलषो सिं० नासकानो मे सज० सरीरना अवये या महारवस्त्रादि नुपधिसरीर म.म. वशियासमति नच्चारंपासवांखेल सिंघाएाजत्रियं हनोमेल आहारं नवहीदेह ॥ त्र्यन्नं धवाथी ने पूर्णत० तेनूपरब्बा। तेनेपरववे१५०वेगसाथी कोई देषतो नयी म。 यावते तोकोनथी चेक पर होच्छे संदेषनं दूरथी वावितहाविहं ॥ १५ ॥ जोग्प१५ णावाएमसंलोए ॥ margdarsh || संजोएमा कोइ देषे नहीं कोइ पण देषतो नथी यावर आपण बेअ० अनेदेषेपाने १६ अ० मनदेधे पाने एचनलंगी मध्ये कोएा बोसबेते वाएमसंलोए ॥ प्रारएचेवड संलीए ॥। १६ ॥ marriere वेणतांनथीदेषतो सन्उंचीनीची लूमिनहिसमि भूमि परवचे अन्तएा पानमादिक कुर्सि रनहि तिहां परने का• समेन्प्रसिरेाचि ॥ चिरकालकiमिय ॥ १७ ॥ प पर जीवनात या पोतानाघात नृपजेनहीं. परस्समएफवघाइए । काल थियो बे परतीनोन दि。विस्तीर्ण लूमि दू० उंची है बिचित भूमि) नाव बेगे रह्यो तिहाथी ढूंकको नही. बब्बर । तत्रसप्राणीबी बीजादिक २६८ चितथथाचे तिहां बसी विभिन्नेदूरमोगाढे थई होए निहां नासन्नेबिल बचिए || जीने परग्वे तसपाएाबीयरहिए For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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