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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४७ गों गौतम मच महा यसबन न बेनेपणाने साथीनगरीनेविषे विविचरनाथका अन्मनपचन काया गुप्तने विधेसु० लसासमाधिसहितने अ-२३ गोयमेय महायसे । नलने वितन्न विहरिस । अलीगा ससमाहिया ॥॥ न० बेने केसीगौतमना सी शिष्य समूह संक ने शिष्यसंजनी डे न तपस्वी वे त तिहांचिंना विचारणासन्नुपनी गुन्गुएवंन नुलन सीस संघाणं । संजयाएं। तवस्सिएं तस्स चिंता समुप्पन्ना। गुएवं नी ना बकायरषपालते १० के० केहवो चली ३० एअमसंबंधि धर्म महाव्रतादि के केहवा आन् आचारसाधुनो वेषप्रमु ताणताणं ॥१०॥ केरिसो वाश्मोयम्मोय रूपइएधर्म के रिसो ॥ आयारधम्मपणि पक्रिया सहिनधर्मने इ. एअमसंबंधि क्रियासा० तेबीजावतसंबंधीक्रियाक चा० चारमहाजनरूप जो जेधर्म श्रीपारसनावि तीर्थकरे जोन हि विषे रहिवू इमावासाव केरिसो ॥ ११ ॥ हेवी ११ चानघामोय जोधम्मो कह्यो. जो जे ऐ पंपांचमहाव्रतरूप शिष्यवृतदेल्नुपदेस्यापर्म य० वर्षमानस्वामीएं पश्रीपारसनाथि मन् महामुनीश्वरें महाबनरूपधर्मनुप अ० इसो पंचसिरिकन देसिने वहमाऐएं ॥ पासेणय महामुएी ॥ १२ ॥देस्यो१२ अचे सामान्यवस्त्र अथवा मानोपेन जो जोधर्मत्तेवर्धमानस्पामीए | श्रीपारसनापिनोपदेस्यो धर्म ए एकका परिवर्जीने पवतेचे लेणेविसेषफेर |२५७ खगोय वस्मरूपअचेलक जोधम्मो उपदेस्यो जोश्मोसंतरुत्तरो मोरूपोचवानोकारजएगंकद्यपवन्नाएं। For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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