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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie | को० क्रोधने जीतकरीस क्षमानुपराने को क्रोध जेकर्मबांधीने दे० पठे कर्मस्लोगवे लेबाचपूरणे कर्मक्षमाएंकरीनबांधे पुल पूर्वेबांध्या अ.२९॥ ३५० कोहविजएखतिजएण्यई ॥ कोहवेयगिधंचकम्मनबंबई . पुवबंउंच निघरेई ॥ जे कर्मषपाये ६७ मा मानने जीतबेकरी हे पूज्यजीव कि सुनुपराजे हवे उत्तर मात्र माननेजीतकरी मअहंकार रहितपर्फ उपराने मागविजएलतेजीवे फिनएयर्थ । मागविजएवं महवंजय मा० मानने करवेकरी जे कर्मबांधीने ये पोते कर्म मोगये तेबां कर्मन पु० मानेकरी जे कर्म पूरवपावे. ६८ मात्र मायाने जीपवेकरी हे मारणपेयपियकम्मनबंधश् । बांधे पुचबंधचनिधरेई ॥ ६८ ॥ मायाविजएणं पूज्य जीव किं सुनुपराजे हवे मुत्तर मा० मायाने जीतवे करीत सरस लावनपराजे मा० माया करवे करी जेकर्मबांधीनें परे लोगवेने लंतेजीवे किंजरायई। मायाविजएएनधुलावंजायई। मायावेयणिधकम्मनबंधयई। बांकर्मनबांधे. पु० पूर्व बांध्याजेकर्मषपाचे ६५ सो सोत्मनजीतबेकरीहे पू-य जीव किं. सुनुपराजे हवे उत्तर सो- सोलंकरी जेकर्मबांध्या | पुत्वबचनिधरेश्॥६॥ लोलविजएगलत जीव किजएयश् । खालविजएएसतो| जीवते संसंतोषलाब उपराजे खो खोलेंकरीजे कर्म बाध्य पढे लोगवे नेबां कर्मनबांधे पु०पूर्व जे चांध्या ते निर्जरे ७० पे रागद्वेष ||३५० सत्मावंजएयई ॥ सोनवेयंणिकम्मनबंधई । पुचबंधचनिघरेई ॥३॥पेघदोस For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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