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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न|| से० ते नरहे संसारमाहे लमे नहि १३ व अनेरा अाउमदंकरीना० ज्ञाताना १० मा अध्ययनने विषं ग बास थानकन अ. असमापीनेरि अ.३१ ३६८ सेनअचश्मंगखे ॥१३॥ बलंमि नायशय सु ॥ गएरोसुअसमाहिए। | जे. जेसाधु ज. ब्रम्हचर्यपासवाने विष ज्ञाताना अध्ययनसमा सदद्दवान करे नि सदाएनेनरहे संसारमाई लमे नहि ए. चारित्रकार जेलिस्कू जयशनिच्चं ॥ विषयसमाधिनाधानकनांवानेविषेदम सेनअश्मंगले ॥१४॥ एगवीसाएस सकर तेएकवीसससा तेनेविषे बाल बाविस परिसहे जेजे साधु ० एकास सबखाटांगवान विष२ | विषेनुदमको सदाएस. नेन बसेसु॥ बाविसायपरिसहे। जेलिस्कू जयनिचं ॥परिसह सहबाने सेनबममले लमैनहि १५ ने. वीस अध्ययन सूयगमांगनाचं बेश्रुतस्कंधनेविषेसा वीसनुपरै १ अधकू कीजनो २५ फुए मु० २५ देसनवनपति ८ ॥१५॥ तेविसयिसूयगमे । रुवाहिएकुसुरेसुय व्यंतर ५ ज्योतषी एक जे वैमानिक २४ दयत्तानी जान श्रयेचा तीर्थकरजे साधु सह सुगमांगने विषेसमासदहवानविषे २४ तीर्थकर से तैनरहे संसारमाहे लमेनहि १६ प०५ महाबननी २५त्भावनानपिपे जेलिस्कू जय निच्च ॥ आराधयानविषेनि सदाएसेनअवश्ममते॥१६॥ परावीसत्मावएगाहिं। न०२६नर्देशोद दशा श्रुनस्कंधना १० नईसा लेअादिदेश्बृहत २० भद्देशानेविषे जेसाघु न० २५ लावनासमिश्राराध्यानेविष ६ मुद्देशासमा ||३६८ नदेसे सुदसाश्यं ॥ कल्पना धनुद्देशाव्यवहारना'जेलिस्कूजयशनिचं ॥ सदद्वयाने नद्यम करे निः सदाएते For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
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