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ઇરણી
अप्रनियंधविहारे विचरे जा. जांलगे का० मरएानु प्रस्ताव आवे तांसगे १० निसलेषणा करवेकरीडांगी तेगा काल काय अ-३६ | विहरेद्या। जाव कालस्सपद्य ॥१६॥ निजुहिनाअहारं । हार कालय | नोअवसर आवेयके व बांगीने मा० मनुष्पनो सरीर प समर्यानो घएगी बिन मकाए २० निम्ममनारहिताना म्मेनुवहिए। चश्नएमाणसंबोदी । पाके विमुच्चई ॥ २०॥ निम्ममोनिर अहंकाररहित यी रागदेषारदिन अ० कर्म भाववायिकीरहिन संपांम्योयको के केवलज्ञान सा साश्वतो प. यस्योविसम्यो कर्मषपावचाय हंकारो। पीयरागोअगासयो । संपत्तो केवनाएं। सासएपरिनिबुझे ॥ तिबेमि किसीतखीलूत थाए३० श्रीसुधर्मास्वामीजंबूस्वामीप्रतेकहे हेजंबूजेममें श्रीमहावीरदेवसमीपें सांत्मप्यूहतुं तैम तुजप्रतें कशंढुं| ॥२१॥ इतिअागारमग्गनामाअायएपणतीसमंसंमत्तं ॥३५॥ इति अपागारनामारगनां में ३५ मुंअध्ययन संपूर्ण ॥३५॥ पांत्रीसमा अध्ययननेविषे अपागारनो मार्ग कयो ने अपागार जी जीव काष्ठादिक अजीव तो जीवना जाएापणाथी नए तेत्मएी ३६ मा अध्ययननेविषेजीवअजीवना लेदकहेडे. जीवाजीववित्लत्ति। लेदजूदा स० सालस अहोशिष्य मे० मुजने कहलायका एक एकाग्र जंजे जीवादिक जाएीने स.साचे सनेकरीज० दमकरेसंज|| ५२९ सहेपोहमेएगमएाइने । मनयको (जंजाणिकएसमणे। सम्मेजयश्संजमे ॥१॥
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