SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चि० बांदीने एत. म. सन्मुषधईने सांवाना ७२ घरथकी ॥ च्चिचा अलिनिरकं उ.- नगरी के वी . ३ मि. मिथिला स० मनेरपुर ज. देससहि ब० बलचतुरंगी सेन्या त्र्यंत नरपुनः सजना नगरीमा नगरसहितबे तबे दिक सर्व चय ॥ ३ ॥ मिहितं सपुरु जण्वयं बसमारोहंच परियां सर्व्वं निकल्पी. ए. रागद्वेषादिक एकांतरहित निस्पृहपणाने को० विसापादिकनी शब्द प्रा० फुतो मि० मिथिलानगरी प० प्रवसेने श्री ज्ञानवंत कोलाहल थियो. नेविषे बते त० कोसाहसगलूयं तो सी महिलाए पन्चयं तं तिचारे न० नमीघरथी निकले के ५ • सावधान यो रा० राजऋ प० प्रवजनु धानक इव्य षि थी बनादिक लावथी ज्ञाना ॥ एवं तमहिविनुं लयवं ॥ ४ ॥ रा० राजमातांप रिषीसर तैरा मि तइयारायरिसिंमि नमित्र्मलिनिरकमंतंमि ॥ ५ ॥ दिक धानक ते थानक केवोबे नृ प्रधान सब सकें ब्राह्मएाने रूपें एवा थानक प्रते सावधानथयाबे नमि राजाएं वे व्यवस झुच्वियं रारिति परागणमुत्तमं ३० पहवी वचन बोलतो फुने ६ कि.किम लो० यामं विचारणा हो सक्को माहारूवेषां ॥ इमंचयामवि ॥ ६ ॥ किंतु लोमय For Private and Personal Use Only
SR No.020853
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorKhetsi Jivraj Shah
PublisherKhetsi Jivraj Shah
Publication Year1895
Total Pages447
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy